रक्षा मंत्रालय को सीमित स्पर्धा होने की चिंता, एक ही विक्रेता उभरकर आने से विवाद होने की आशंका
नई दिल्ली: वायुसेना की एकल इंजन वाले लड़ाकू विमान की खरीद मुश्किलों में फंस गई है।सरकार ने सवाल उठाए हैं कि चयन प्रतिद्वंद्वी जेटकी तकनीकी क्षमताओं की बजाय इंजन की संख्या के आधार पर क्यों होना चाहिए।
वायु सेना को रक्षा मंत्रालय के शीर्ष अफसरों की ओर से गहरी पड़ताल का सामना करना पड़ रहा है।रक्षा मंत्रालय को आशंका है कि स्पर्धा सिर्फदो वैश्विक विक्रेताओं में होने के कारण मामला सिर्फ एक विक्रेता तक सीमित रह जाएगा।ये दोनों विक्रेता भी इसके पहले के दौर में इस आधार परखारिज कर दिए गए थे कि वे तकनीकी जरूरतों पर खरे नहीं उतरते।
बहस तब शुरू हुई जब वायुसेना ने नए रणनीतिक भागीदारी मॉडल के तहत अाधिकारिक रूप से एकल इंजन वाले जेट की खरीद की पहल की।इसमें भारत में जेट के उत्पादन की नई इकाई स्थापित करना भी शामिल है।
सूत्रों ने द प्रिंट को बताया कि वायु सेना ने अपनी जरूरतों को दो भागों में बांटने की दलील दी- नई एकल इंजन की जेट उत्पादन इकाई और अलगसे दो इंजन वाला जेट कार्यक्रम।लेकिन, रक्षा मंत्रालय अभी इससे सहमत नहीं है।
जानकार सूत्रों का कहना है कि खरीद की प्रक्रिया शुरू करने वाली निर्धारित रिक्वेस्ट फॉर इन्फॉर्मेशन (आरएफआई) जारी होने के पहले वायु सेनाअौर रक्षा मंत्रालय के बीच सूचना आदान-प्रदान के कई दौर हुए हैं।
इस होड़ में अमेरिकी एफ-16 और स्वीडिश ग्रिपन, ये दो ही प्रतिद्वंद्वी हैं।लेकिन, यदि इंजन की जरूरत हटा ली जाए और चयन केवल क्षमता केआधार पर हो तो इससे मिग-35, यूरोफाइटर, एफ-18 और राफेल सहित कई दावेदारों के लिए मैदान खुल जाएगा।
हाल में हुए रक्षा सौदों के संबंध में चल रही दो सीबीअाई जांच को देखते हुए रक्षा मंत्रालय बहुत सावधानी बरत रहा है।जांच इस आशंका केआधार पर हो रही है कि एक विदेशी विक्रेता को दूसरे पर तरजीह देने के लिए रिश्वत ली गई है।
साउथ ब्लॉक के एक वरिष्ठ सूत्र ने द प्रिंट को बताया, ‘हम एक और ऑगस्टा वेस्टलैंड नहीं चाहते, जिसके बारे में सीबीआई को लगता है कि इटलीके विक्रेताओं के हित में जरूरत संबंधी ब्योरे बदले गए और टेस्ट में भी गड़बड़ी की गई।’
जहां एकल इंजन खरीद पर पिछले कई महीनों से बातचीत चल रही है, वहीं इस बारे में आगे बढ़ने का औपचारिक फैसला रक्षा मंत्री निर्मलासीतारमन को लेना होगा।उनके पूर्ववर्ती मनोहर पर्रिकर पद छोड़ने के पहले खरीद के मुखर समर्थक थे लेकिन, मंजूरी की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ाईगई।
रक्षा मंत्रालय की आधाकारिक रणनीतिक भागीदारी की प्रक्रिया लड़ाकू विमान खरीद का उल्लेख प्राथमिकता वाली परियोजना के रूप में तोकरती है लेकिन, इंजन की संख्या को चयन का मानक नहीं बताती।
रक्षा मंत्रालय के भीतर कई अनाधिकृत ‘श्वेत-पत्र’ घूम रहे हैं, जिसमें खरीद की प्रक्रिया आगे बढ़ने के साथ उठने वाली संभावित समस्याओं की चर्चाकी गई है, खासतौर पर यह आशंका की स्पर्धा से एक विक्रेता शेष रहने की स्थिति निर्मित हो सकती है।
ऐसे ही एक पत्र में ध्यान दिलाया गया है कि 2011 में चयन के पिछले दौर में अमेरिकी एफ-16 आधिकारिक स्तर पर इसलिए खारिज कर दियागया था कि वायुसेना के मुताबिक विमान को अधिक उन्नत बनाने की गुंजाइश नहीं है, क्योंकि उसमें विकास क्षमता ही नहीं है।
चूंकि ये विमान अगले कई दशकों तक इस्तेमाल होंगे इसलिए उनमें उन्नत बनाए जाने की क्षमता होना मुख्य आवश्यकता है। उस पत्र में यहदलील देते हुए कहा गया है कि इसलिए चयन को स्वीडिश विक्रेता के पक्ष में मोड़ा जा रहा है।
जहां अभी आधिकारिक टेंडर जारी करने से लेकर चयन और वित्तीय सूक्ष्म जांच तक बहुत सारा काम बाकी है पर लड़ाकू जेट सौदे ने गहरी रुचिजगाई है। दोनों दावेदार पहले ही भारतीय भागीदारों के साथ गठबंधन कर चुके हैं।ग्रिपन बनाने वाली कंपनी साब ने गौतम अडानी समूह कोभागीदार बनाने की घोषणा की है, जबकि एफ-16 बनाने वाली लॉकहीड मार्टिन ने टाटा समूह का चयन किया है।
आगे जो लंबा रास्ता है उसमें रक्षा मंत्रालय द्वारा प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसल्टेंसी का चयन भी है।यह कंसल्टेंसी रणनीतिक भागीदार बनने के लिएजरूरी भारतीय कंपनियों की वित्तीय और तकनीकी क्षमताओं की जांच करेगी।