मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर की योजना के तहत राज्य सरकार जेलों की फालतू जमीन पर बनाएगी गौशालाएं.
चंडीगढ़: हरियाणा भी उन राज्यों के समूह में शामिल होने जा रहा है, जहां जेलों के कैदी और गायें साथ-साथ रहेंगी. हालांकि इस प्रस्ताव का उद्देश्य भाजपा शासित इस प्रदेश में गोशालाओं को ‘स्वावलंबी’ बनाना है, लेकिन इसके साथ यह भी अपेक्षा की जा रही है कि जेलों में गायों की सेवा करते-करते सजायाफ्ता और विचाराधीन कैदियों के जीवन में भी सुधार आएगा.
मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने नवंबर 2016 में जो विचार प्रस्तुत किया था उसके मुताबिक राज्य सरकार जेलों की फालतू जमीन पर गोशालाएं बनाएगी और गायों की देखभाल वहां के कैदी करेंगे. पहली ऐसी गोशाला इस साल के मध्य तक करनाल जेल में बन जाएगी. इसके बाद अंबाला, जींद, भिवानी, सोनीपत, रोहतक की जेलों की बारी आएगी.
मध्य प्रदेश और गुजरात की जेलं में पहले से ही गोशालाएं बनी हैं. दिल्ली की तिहाड़ जेल में गोशाला में करीब एक दर्जन गायें हैं. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी खट्टर के पदचिह्नों पर चलने की सोच रहे हैं. वैसे, आगरा और इलाहाबाद की जेलों में छोटी गोशालाएं बनी हुई हैं.
कैदियों को ‘गोउपचार’ से सुधारने की भाजपा सरकारों की योजना पर कुछ लोग तो चुटकी भी ले रहे हैं, लेकिन दरअसल यह गोशालाओं को ‘स्वावलंबी’ बनाने के ख्याल से किया जा रहा है. यह कहना है हरियाणा के गोसेवा आयोग के अध्यक्ष भणीराम मंगला का. उन्होंने ‘दिप्रिंट’ को बताया कि “जेलों के पास काफी जमीन है जिन पर गेहूं की खेती होती है. इस जमीन के छोटे टुकड़े पर गोशाला बनाई जा सकती है और उनके लिए चारा भी उगाया जा सकता है. स्थान के हिसाब से हरेक गोशाला में करीब 400 परित्यक्त और 200 दुधारू गायों को रखा जा सकता है. गोबर की खाद जेल के खेतों के काम आएगी.”
मंगला ने दूसरे हिसाब-किताब भी लगाए हैं. वे कहते हैं, “गायों का दूध जेल के अंदर और बाहर बेचा जा सकता है, जिसकी आय से बाकी खर्चे चलाए जा सकते हैं. जेलों में शारीरिक श्रम करके कमाई करने वाले कैदी गायों की देखभाल करके कमा सकते हैं. सरकार को शुरू में शेड वगैरह बनाने पर खर्च करना पड़ेगा. इसके बाद तो गोशालाएं स्वावलंबी होती जाएंगी.”
लेकिन क्या ‘गोउपचार’ से कैदियों को सुधारा जा सकेगा? मंगला जवाब देते हैं, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि गायों की सेवा करने से कैदियों के मन-मस्तिष्क पर अच्छा असर पड़ेगा. उनके विचारों में परिवर्तन आएगा.” दिल्ली के होली काउ फाउंडेशन की अनुराधा मोदी भी इस विचार से सहमत हैं, “हमने 2015 में तिहाड़ जेल में एक छोटी गौशाला बनाई. लेकिन इस आंशिक तौर पर खुली जेल में इतनी जगह है कि एक बड़ी गौशाला आसानी से बनाई जा सकती है. जेल में काम करने वालों की कमी नहीं है. कैदियों को दूध के अलावा गोबर, गोमूत्र से तरह-तरह की चीजें बनाना सिखाया जा सकता है. इसमें शक नहीं कि जिन कैदियों ने गायों की सेवा की उनके आचरण में सुधार के लक्षण देखे गए.”
पंजाब के गोसेवा आयोग ने भी 2015 में अकाली-भाजपा सरकार के जमाने में जेलों में गोशालाएं बनाने की कोशिश की थी मगर प्रस्ताव जेल विभाग से आगे नहीं बढ़ पाया. 2013 में राजस्थान ने जेलों में कैदियों की भीड़ को कम करने के लिए उन्हें गोशालाओं में भेजने का प्रस्ताव किया था. इसके तहत 10 साल से ज्यादा की जेल काट चुके अच्छे आचारण वाले कैदियों को सरकारी गोशालाओं की ‘खुली जेल’ में रखने का प्रस्ताव था, जहां वे बाकी सजा गायों की सेवा करते हुए काटें.