मोदी की लोकप्रियता तो बरकारार है लेकिन 2019 के चुनाव से पहले कांग्रेस में नई जान आ जाती है तो ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ का लक्ष्य हासिल करना आसान नहीं रह जाएगा.
वर्ष 2018 कई दावेदारों के लिए निर्णायक साबित हो सकता है. लोकसभा चुनाव के लिए अब एक साल ही रह जाएगा. वर्ष 2018 तो 21वीं सदी के भारत को भी आकार देगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में कहा था कि 21वीं सदी में जन्मे लोगों के लिए 2018 महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि तब वे लोग 18 की उम्र के हो जाएंगे और ‘न्यू इंडिया’ की कल्पना में रंग भरने लगेंगे. मोदी उन 13.9 करोड़ युवाओं को लक्ष्य कर रहे थे, जो 2019 में पहली बार मतदाता बनेंगे.
अपने गृह-प्रदेश गुजरात, तथा हिमाचल प्रदेश में ताजा-ताजा जीत के कारण मोदी राजनीतिक दृष्टि से तो 2018 की शुरुआत उम्मीदों के साथ करेगे लेकिन आगे की राह शायद इतनी आसान नहीं होगी. हालांकि भाजपा ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल सहित छह राज्यों में सत्ता हासिल कर ली है लेकिन गुजरात में उसे बेहद कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा.
प्रधानमंत्री को पता है कि 2019 कोई 2014 नहीं होने वाला है, क्योंकि राजनीतिक परिदृश्य काफी बदल चुका है. अगले चुनाव कांग्रेस की विफलताओं पर नहीं, मोदी की उपलब्धियों पर जनमतसंग्रह जैसे होंगे. मोदी की लोकप्रियता बेशक बरकारार है लेकिन 2019 के चुनाव से पहले कांग्रेस में नई जान आ जाती है तो ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ का लक्ष्य हासिल करना शायद उनके लिए आसान नहीं रह जाएगा. नई ऊर्जा से लबालब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व मे कांग्रेस ने गुजरात में इसके संकेत दे दिए हैं.
गुजरात में जातिगत नेताओं की सफलता के बाद कांग्रेस महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा, आदि राज्यों में हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर, तथा जिग्नेश मेवाणी की प्रतिकृति तैयार कर सकती है. आशंकाएं खराब मानसून, डोकलाम के बाद के चीन या पाकिस्तान से छोटी लड़ाई या तेल की कीमत के झटकों को लेकर है. मोदी न तो राजनीतिक विवादों को भड़काने का जोखिम मोल ले सकते हैं और न भूमि या मजदूरों से जुड़े कानूनों में सुधार का खतरा उठा सकते हैं और न तीन तलाक या दूसरे सामाजिक सुधारों की पहल कर सकते हैं.
अगला साल भी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी साल आठ राज्यों के चुनाव मिनी आम चुनाव का जैसा माहौल बना देंगे. भाजपा अकेले या अन्य सहयोगियों के साथ केंद्र से लेकर 19 राज्यों में सत्ता संभाले हुए है. कांग्रेस कर्नाटक, मेघालय और मिजोरम में सत्ता में है, तो भाजपा राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में अपने दम पर सत्ता में है. त्रिपुरा में माकपा का राज है. इनमें से अधिकतर राज्यों में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर होने वाली है.
भाजपा कम-से-कम चार राज्यों- कर्नाटक, मिजोरम, मेघालय, नगालैंड- को अपने कब्जे में लेना चाहती है, जबकि कांग्रेस राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ को भाजपा से छीनना चाहती है. यानी 2018 में यह फैसला हो जाएगा कि कांग्रेस फिर से मजबूत हो पाएगी या नहीं. राहुल गांधी नया साल नई जोश के साथ शुरू करें, इसकी वजहें कई हैं- गुजरात में दमदार मुकाबला, 2जी मामले से छुटकारा, आदर्श घोटाले से कांग्रेस को राहत, राजस्थान के स्थानीय चुनावों में कांग्रेस की जीत. अब राहुल को ऐसा कुछ करना होगा कि कांग्रेस कम-से-कम तीन राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ (जहां से 63 लोकसभा सीटों का फैसला होता है) – को भाजपा से छीन ले और देश में बराबरी की चुनौती देने के काबिल बन जाए. राहुल के लिए पार्टी संगठन को मजबूत बनाने, दूसरी पंक्ति के नेताओं की जमात तैयार करने, नया आख्यान रचने और खुद सौ प्रतिशत राजनेता बनने की चुनौतियां हैं. क्या वे यह सब कर पाएंगे?
मोदी के लिए चुनौतियां होंगी- अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, और ज्यादा विदेशी निवेश को आकर्षित करना. अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने इस हफ्ते कहा है,”वित्तीय क्षेत्र को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. आर्थिक वृद्धि की रफ्तार धीमी पड़ गई है. बैंकों का बढ़ता नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स और कॉरपोरेट बैलेंस शीट से लाभ उठाने की धीमी रफ्तार बैंकिंग व्यवस्था की परीक्षा ले रही है और निवेश तथा विकास में बाधा डाल रही है”.
महंगाई बढ़ रही है. निजी क्षेत्र के निवेश घट रहे हैं और वित्तीय दबाव बढ़ रहा है. आर्थिक परिदृश्य बहुत चमकदार नहीं दिख रहा है. 1 फरवरी को पेश किए जाने वाले बजट से बहुत कुछ अदाजा लग जाएगा. चूंकि विधानसमाओं के चुनाव पूरे साल भर होते रहेंगे इसलिए नरम, लोकलुभावन बजट की ही उम्मीद है. एक अखबार ने वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के हवाले से खबर दी कि अगले बजट में किसानों, ग्रामीण रोजगार और बुनियादी ढांचे पर जोर होगा. पहली बार बजट में रोजगार नीति शामिल की जा सकती है, जिसमें तमाम व्यावसायिक क्षेत्रों में स्तरीय रोजगार पैदा करने पर जोर होगा.
जहां तक विदेश नीति की बात है, इस साल की शुरुआत में दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड में आशियान देशों के 10 नेता विशेष मेहमान के तौर पर उपस्थित होंगे. यह साल विदेशी अतिथियों के दौरों से व्यस्ततता भरा होगा. यूएई, चीन, अर्जेंटीना, दक्षिण अफ्रीका, सिंगापुर, श्रीलंका के अलावा राष्ट्रमंडल तथा जी-20 देशों से राजनयिक स्तर पर मेलजोल चलते रहेंगे. चीन, पाकिस्तान के आतंकवादी हमलों के खतरे से लेकर अमेरिका तथा रूस से रिश्ते सुधारने की चुनौतियां इस साल प्रमुख होंगी. पड़ोसी देशों के प्रति भारत की नीति 2016 में तो अच्छी तरह शुरू हुई थी मगर वह अब दबाव में दिख रही है, क्योंकि चीन ज्यादा प्रभावशाली हो रहा है.
कुल मिलाकर 2019 के लिए मोदी का अभियान जनवरी से ही शुरू हो जाएगा. भाजपा के शक्तिशाली नेतृत्व, अकूत कोश, अनुशासित काडर, प्रतिबद्ध चुनावी मशीनरी और मीडिया समर्थन हासिल है. एकजुट विपक्ष चुनौती बन सकता है लेकिन 2019 से पहले विपक्षी एकता? यह लाख टके का ही सवाल है.
कल्याणी शंकर स्तंभ लेखिका हैं और हिंदुस्तान टाइम्स की राजनीतिक संपादक और वाशिंगटन स्थित संवाददाता रह चुकी हैं.