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Friday, April 26, 2024
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रजनीकांत का काम शब्दों मात्र से नहीं चलेगा; वह केंद्र में हैं, उनको करना होगा

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ऐसा लगता है कि रजनीकांत साफ तौर पर खुद को मुक्तिदाता मानते हैं, कि उनकी सरकार एक आध्यात्मिक रास्ता अपनाएगी, जो नस्ल और जाति से परे हो.

तालियों की गड़गड़ाहट ने उनको कुछ देर रुकने को मजबूर किया. रजनीकांतः सुपरसितारा, आदर्श, ‘भगवान’…ने वे जादुई शब्द कह दिए, जिनका फैंस को 20 वर्षों से इंतजार था.

उनके पोस्टर पर लिखा थाः ‘थलैवा, वा धरणी आला वा’ (आओ हमारे नायक और धरती पर शासन करो). उन्होंने हालांकि समय लिया. फैंस को चिंता थी कि उनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर फेल हो रही थीं और थलैवा अब भी अपनी राजनीतिक शुरुआत के लिए तैयार नहीं थे.

इस बार उनके शब्द बिल्कुल साफ थे, हालांकि उन्होंने भगवद्गीता के संस्कृत श्लोक से शुरुआत की, जो वे नहीं समझ पाएंगे. उन्होंने कहा, “यह तय है कि मैं राजनीति में उतर रहा हूं. मैं अगले विधानसभा चुनाव के पहले पार्टी के गठन की घोषणा करूंगा और हम पूरे 234 विधानसभा क्षेत्रों में लड़ेंगे”. उनकी घोषणा से आश्चर्य की लहरें राघवेंद्र कल्याण मंडपम् से निकलकर चेन्नै की सड़कों पर छा गयी, द्रमुक और अन्नाद्रमुक जैसी पुरानी द्रविड़ियन पार्टियों के दफ्तरों तक में पहुंच गयी। हालांकि, चुनाव अभी बहुत दूर 2021 में है.

रजनीकांत ने सिंह-गर्जना की, “मैं पद या यश के लिए राजनीति में नहीं जा रहा. यदि मैं वही चाहता, तो 1996 में ही जुड़ जाता. अब 67 वर्ष की अवस्था में राजनीति में जाना बताता है कि यह वक्त की जरूरत है. यहां की व्यवस्था निकृष्टतम हो चुकी है. यदि मैंने इसको ठीक करने के लिए कुछ नहीं किया, तो मेरी आत्मा हमेशा धिक्कारेगी कि मैंने तमिल लोगों के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह नहीं किया, जिन्होंने मुझे इस ऊंचाई तक पहुंचाया”.

ऐसा लगता है कि रजनीकांत साफ तौर पर खुद को मुक्तिदाता मानते हैं, कि उनकी सरकार एक आध्यात्मिक रास्ता अपनाएगी, जो नस्ल और जाति से परे हो.

पिछले 60 वर्षों के द्रविड़ शासन में किसी ने ‘आध्यात्मिक’ शब्द का उच्चारण नहीं सुना, यहां तक कि मंदिर जानेवाली जयललिता से भी नहीं. रजनी का मतलब क्या है? धर्म आधारित एक ईमानदार सरकार? रामराज्य? या गांधीवादी दर्शन? उन्होंने खुलासा नहीं किया.

क्या उनके शब्द आनेवाली फिल्म 2.0 (2010 की फिल्म एंथीरन का सीक्वल) का प्रोमो हैं, जो जल्द ही रिलीज होने जा रही है. वह उन पत्रकारों से भयभीत होते हैं, जो उनसे ‘उनकी विचारधारा’ पर सवाल पूछते हैं. वह कहते हैं कि ऐसे सवालों पर उनका सिर घूमता है.

हालांकि, उनका जोशीला भाषण तो शानदार भविष्य का संकेत करता है. उनके फैंस एक बड़ी भूमिका निभाएंगे, जो उनके दिलों को भाता है. कभी उन्होंने रजनी की फिल्म के रिलीज होने की पूर्वसंध्या पर सिनेमा हॉल के गेट पर रतजगा किया है, अपनी मेहनत की कमाई पहले दिन, पहले शो के टिकट पर खर्च किया है, जिसकी कीमत आसमान छूती है, अब वे उनको तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं – इसकी कोई कीमत नहीं कि वह असल में कर्नाटक से हैं और अपनी मातृभाषा मराठी बोलते हैं.

उन्होंने पूरी पीढ़ी को स्क्रीन पर के अपने अतुल्य आकर्षण और बहादुरी से अपना दीवाना बनाया है और उन युवाओं के दिल जीते, जो जीवन में अपना सपना पूरा नहीं कर पाने की असफलता से अवसाद में थे. वह उनका सपना बन गए, उनकी उम्मीद ताकि वे अपनी नाउम्मीद ज़िंदगी के मायने पाएं, जैसा कि उन्होंने एक तस्वीर बनायी है, भले ही शब्द दूसरों के लिखे हों.

जो आलोचक इस अभिनेता की तमिलनाडु की राजनीति से नावाकिफ होने की बात करते हैं (रजनी अबी भी तमिल अटककर बोलते हैं), उनको वह बताते हैं कि वह तो दो दशकों से राजनीति में हैं. उनके शब्द इतने ताकतवर रहे हैं कि राजनीतिक करवटें रोक दें या करवा दें. याद करें, जब उन्होंने 1996 के विधानसभा चुनाव के पहले कहे थे “अगर जयललिता वापस सत्ता में आयीं, तो भगवान भी तमिलनाडु को बचा नहीं सकते”.

इसकी वजह से कांग्रेस में बंटवारा होकर तमिल मनीला कांग्रेस बनी, जिसके मुखिया थे जी के मूपनार. जयललिता की शर्मनाक हार हुई। द्रमुक ने आसानी से मोर्चा फतह किया और करुणानिधि सत्ता में वापस आए.

अब थलैवा केवल शब्दों तक नहीं रुक सकते. वह केंद्र में हैं. उनको करना है. उन्होंने कहा, “समय आ गया है। युद्ध के लिए तैयार रहो”.

सचमुच, जयललिता अब मर चुकी हैं, बेचारे करुणानिधि इतने बीमार हैं कि बोल भी नहीं पाते. साफ तौर पर, एक शून्य है, जैसा उनके भगवा मित्रों ने बताया. उनके फैंस से अधिक, यह भगवा ब्रिगेड है, जो अनथक प्रयास कर रहा है ताकि तमिलनाडु में उसकी ठीकठाक उपस्थिति भी दिख जाए. इसीलिए, दुगुने उत्साह से भगवा दल उनका स्वागत कर रहा है.

यह उनके चाहनेवालों को भ्रमित करता है. वह कहते हैं, “मैं संकोच में था क्योंकि राजनीति के खतरे और लफड़े मैं जानता हूं. अगर हम युद्ध करने की ठानते हैं, तो मुझे इसे जीतना चाहिए। केवल वीरता ही काफी नहीं है, हमें अच्छी रणनीति की जरूरत है”.

उनकी रणनीति अपने फैन क्लब बढ़ाने की है, अनिबंधित समूहों को निंबधित करने की है, जो पूरे तमिलनाडु में फैल जाएं और उनका समर्थन करें.अगले तीन साल में यह उनके 50 हजार फैन क्लबों का काम होना चाहिए.

फैंस ने बिना रुके उनकी हरेक बात पर ताली बजायी, हालांकि वह छिपी हुई बातों को नहीं देख पाए. वह बॉस हैं, आदर्श हैं. वही पुरानी कहानी फिर से.

वे उनके थोंडर (भक्त या सेवादार) हैं, हालांकि वह कहते हैं कि उनको थोंडर नहीं, सैनिक चाहिए. वह उनके कमांडर बनेंगे, जो केवल मॉनिटर करेगा. उनका कई बार बोला हुआ डायलॉग याद आता है, ‘एन वाझी, थनी वाझी” (मेरा रास्ता अनूठा है).

जाहिर है, रास्ता आसान नहीं है. 1996 से अब तक दृश्य बदल चुका है. तमिल राष्ट्रवाद और क्षेत्रवाद युवाओं में तेजी से सिर उठा रहा है, जो मुखर और हठी हैं, जो भाजपा हाईकमान के एजेंडा को संदेह से देखते हैं.

भाजपा के रजनी के राजनीति में प्रवेश का खुला स्वागत और हर्ष दिखाने से निस्संदेह उनके फैन क्लब में निराशा फैलेगी, जिनमें से बहुतेरे सदस्य अल्पसंख्यक समुदाय से हैं. गैर-भाजपा दल भी उनसे हाथ मिलाने में हिचकेंगे.

यह सोचना कि राजनीतिक शून्य है, एक भ्रम है. उनके प्रवेश से दोनो द्रविड़ दलों पर प्रभाव पड़ेगा, लेकिन रजनी को लंबा रास्ता तय करना होगा.

इसके साथ ही एक अनपेक्षित प्रवेश और शानदार विजेता के तौर पर शशिकला के भतीजे टीटीवी दिनकरन भी हैं, जिन्होंने हाल ही में संपन्न आर के नगर विधानसभा उपचुनाव जीत लिया, स्वर्गीया जयललिता की जगह ली.

ऐसा महसूस होता है कि तमिलनाडु में भ्रष्टाचार अब कोई मुद्दा नहीं है. तमिल उस व्यक्ति के गिर्द जमा हो जाते हैं, जो भी कुछ ‘देनेवाला यानी दाता” है. एक दाता, जो उनकी जेब भर सके, हैट से खरगोश निकाल सके या इंद्रजाल कर सके, कुछ भी.

आखिर, रजनीकांत जो अपने संयम के लिए जाने जाते हैं, इसका मुकाबला कैसे करेंगे? वह, जो पूरी तरह फैंस क्लब पर आश्रित हैं, उनको नियंत्रित कैसे कर पाएंगे? क्या वह जानते हैं कि उनका अपना फैन क्लब दरवाजे-दरवाजे घूमकर पैसा इकट्ठा करता है ताकि उनका जन्मदिन मना सके.

मुश्किल सवाल पूछे जाते हैं. उनकी नीति क्या है? वह नहीं जानते हैं. उनकी विचारधारा क्या है? उनके पास कुछ नहीं है. कोडानकुलम, किसानों की समस्या, श्रीलंका के तमिलों की दुरवस्था, मछुआरों की समस्या, ऑनर किलिंग आदि पर उनका क्या रुख है, जिस पर अभी तक उन्होंने मुंह नहीं खोला है.

सवाल बहुतेरे हैं, जवाब उनके पास नहीं है. वह सही हैं. राजनीति आसान तो नहीं ही है.

वसंती एक लेखिका और पत्रकार हैं, जिन्होंने जे जयललिता की अनधिकारिक जीवनी लिखी है.

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