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Sunday, November 3, 2024
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इंग्लिश-विंग्लिश अब दिक्कत नहीं- स्मार्टफोन व गूगल बदल रहे आम भारतियों की दुनिया

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कम बजट में आनेवाले स्मार्टफोन और इनके एप्स, जो गैर-अंग्रेजी भाषी उपभोक्ताओं का ख्याल रखते हैं, सूचना तक पहुंचने के तरीके बदल रहे हैं.

एक हाथ से पान को मोड़ते हुए, बलबीर चौरसिया अपने फोन को दूसरे हाथ से निकालकर स्पीकर पर ‘मुहम्मद शफी फकीर’ बोलते हैं, यू-ट्यूब पर कई नतीजे सामने आ जाते हैं. वह एक वीडियो पर क्लिक करते हुए कहते हैं, “फकीर एक पाकिस्तानी गायक हैं, जिन्होंने कबीर के गीत बहुत खूबसूरती से गाए हैं. आपकी पीढ़ी को वह सुनकर अच्छा लगेगा”.चौरसिया को उनकी बेटी ने स्मार्टफोन उपहार में दिया था. वह कहते हैं कि अब उनके पास संगीत का वह खजाना है, जिसमें सैकड़ों गीत या बंदिशें बिना स्टोरेज की चिंता के मौजूद हैं. 60 वर्ष से ऊपर हो चुके चौरसिया दशकों से आइटीओ में पान की दुकान चलाते हैं और उनके पास लेनोवो के6 फोन है, जिसकी कीमत 10000 रुपए है.

वह कहते हैं, “मैं केवल वॉयस रिकग्निशन का इस्तेमाल करता हूं. चूंकि मैं अंग्रेजी में टाइप नहीं कर सकता, तो यह मेरे लिए अधिक पहुंच वाला है. अगर फ्रेंच, जर्मन, कोरियन या रूसी बिना अंग्रेजी के काम चला सकते हैं, तो हमें इसे जबरन बनाए रखने की क्या जरूरत है?”

भारत में लगभग 80 फीसदी इंटरनेट चलानेवाले फोन के जरिए इसे चलाते हैं, जिनमें अधिकांश गूगल के एंड्राइड ऑपरेटिंग सिस्टम से चलते हैं. एंड्राइड के ताज़ातरीन ऑपरेटिंग सिस्टम ऑरियो में बिल्कुल ऐसे एप्प भी रहते हैं, जैसे वॉयस-रिकग्निशन पर आधारित गूगल असिस्टेंट, 22 भारतीय भाषाओं के लिए कीपैड और गूगल मैप्स के लिए दोपहिया मोड. सोशल मीडिया का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होनेवाला फेसबुक भी 11 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है और इस तरह के ऐसे एप भी हैं जो धीमे इंटरनेट कनेक्शन वाली जगहों पर भी काम कर सके.

वैसे, इन बजट स्मार्टफोन के उपयोगकर्ता इनका इस्तेमाल कैसे करते हैं, इनके ताज़ा फीचर के साथ?

त्रिशा 29 की हैं और हडसन लेन के एक रेस्त्रां में काम करती हैं.
फोनः माइक्रोमैक्स स्पार्क
मूल्यः 4300 रुपए

“मैं ह्वाट्सएप पर परिवार के साथ वीडियो कॉल करने के लिए अपने फोन का इस्तेमाल करती हूं.”

मूलतः कोलकाता की रहनेवाली त्रिशा पिछले तीन साल से दिल्ली में हैं. वह परिवार के संपर्क में रहने के लिए फोन का इस्तेमाल करती हैं. वह कहती हैं, “यहां आने के बाद तो मैं केवल ह्वाट्सएप पर वीडियो कॉल के लिए फोन का इस्तेमाल करती हूं. पहले कोलकाता में मैं फेसबुक पर नए दोस्त बनाने और लोगों से संपर्क में रहने के लिए फोन चलाती थी. अब मेरे दोस्तों की परिधि छोटी हो गयी है, तो अधिकतर परिवार से बातें सीमित रहती हैं”.

त्रिशा अपने पहले नाम से ही पहचानी जाना पसंद करती हैं, वह कई बार रेस्त्रां के वाइ-फाइ का इस्तेमाल करती हैं और शायद ही कभी फोन में इंटरनेट के लिए खर्च करती हैं. उनका दावा है कि उनकी वास्तविक ज़िंदगी से सोशल मीडिया की ज़िंदगी अधिक रंगीन है.

नंदलाल, कमलानगर में कुक का काम
फोनः सैमसंग डुओज
कीमतः 8000 रुपए

“मेरे बच्चे फोन पर गेम्स खेलना पसंद करते हैं। मैं उन्हें पढ़ने के लिए भी इसका इस्तेमाल करने को कहता हूं.”
नंदलाल कहते हैं कि उनका फोन उनके दोनों बच्चों (10 वर्षीय बेटे औऱ 13 वर्षीया बेटी) के लिए पढ़ाई के इंसेंटिव के तौर पर इस्तेमाल होता है. वह कहते हैं, “यह साधारण सा बार्टर सिस्टम है. अगर वे दो घंटे तक पढ़ते हैं, तो आधा घंटा फोन पर गेम खेल सकते हैं. वे इस पर कार्टून भी देखते हैं”.

जब उनके बच्चे फोन का इस्तेमाल नहीं करते, तो यूट्यूब नंदलाल का पसंदीदा है. वह फेसबुक पर भी सक्रिय हैं, जहां वह केवल हिंदी का इस्तेमाल करते हैं.

यात्रा के समय गूगल एप्स उनकी मदद को आता है. वह कहते हैं, “मैं कई बार गूगल मैप का इस्तेमाल दिशा जानने के लिए करता हूँ. आप बस अपनी जगह का नाम लिखिए और वह आपको पहुंचा देगा”.

राजबाला देवी, 54 वर्ष
सुरक्षाकर्मी
फोनः कार्बन के9
मूल्यः 2,890

“जब भी मुझे किसी चीज के बारे में जानना होता है, मैं गूगल करती हूं.”

गूगल सारे ज्ञान की चाबी है- राजबाला देवी के लिए. वह किरोड़ी मल कॉलेज में सुरक्षाकर्मी हैं.
वह कहती हैं, “मैंने इससे बहुत कुछ सीखा है. रोज की ख़बरों के अलावा, जो मैं हिंदी में पढ़ती हूं, गूगल के पास हरेक चीज़ का जवाब है. मैं एक बार इलायची खरीदने गयी, लेकिन स्टोर में सबकुछ अंग्रेजी में लिखा था. मैंने गूगल-बाबा से इलायची का अंग्रेजी शब्द पूछा. मेरे उच्चराण पर ध्यान न दें, मेरी जबान उतनी मुड़ती नहीं, लेकिन यह कार-डमम है”.

वह बताती हैं कि वह यूट्यूब का इस्तेमाल कर पुराने हिंदी गाने सुनती हैं और रोमन स्क्रिप्ट में हिंदी लिखकर कुछ भी सर्च कर लेती हैं.

विनोद चोबे, 40 वर्ष के ऊपर, जूता पॉलिश करनेवाले, सीपी/कनॉट प्लेस
फोनः नोकिया 105
मूल्यः 1100

“इंटरनेट का हम जैसों के लिए क्या काम है?”

चोबे राजीव चौक मेट्रो के पास जूते प़ॉलिश करते हैं. उनका फोन केवल बात करने के लिए हैं, जिससे वह यूपी के एक गांव में रहनेवाले अपने परिवार के लोगों से बात करते हैं. वह कहते हैं, “इंटरनेट का हमारे लिए क्या काम है? फोन से मैं अपनी चार साल की बच्ची से बात कर लेता हूं और यह काफी है. अगर मैं फैंसी फोन खरीद भी लूं, तो मुझे उसका इस्तेमाल करना कौन सिखाएगा?”

चोबे कहते हैं कि उनकी जीवनचर्या उनको व्यस्त रखती है और वह अपने परिवार से रोजाना एक बार बात करते हैं.

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