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Wednesday, November 6, 2024
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पाकिस्तानी सेना और शरीफ की कोशिश

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भारतीय सेना की कार्रवाई ने कल्पनाओं को ऐसी गति दी कि चुनाव की ओर बढ़ रहे उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और शिव सेना के होर्डिंग तैयार करने का सिलसिला चल निकला। इनमें सबसे कुरूप वह होर्डिंग थी जिसे रामायण की अवधारणा पर तैयार किया गया था। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भगवान राम के रूप में चित्रित किया गया था जहां वह धनुष और तीर हाथ में लिए दशानन रावण बने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को निशाने पर ले रहे थे। अनुयायियों को अधिकार है कि वे अपने नेताओं में ईश्वर के दर्शन करें। इस प्रकरण पर मेरी एक आपत्ति है। आपत्ति इस बात से नहीं है कि पाकिस्तान लंका के समान दुष्ट देश है या नहीं। बल्कि यह आपत्ति तथ्यात्मक है। रावण ऐसा शासक था जिस पर उसके देश में कोई सवाल नहीं उठा सकता था। नवाज शरीफ ऐसे नहीं हैं। रावण अपनी सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति था और सबसे बड़ा योद्घा भी। नवाज शरीफ तो यह भी नहीं जानते कि उनका सेना प्रमुख तय तारीख को पद छोड़ेगा भी या नहीं।

आज जो मिजाज हैं वैसे में तो किसी भी पाकिस्तानी नेता, सैनिक और यहां तक कि अभिनेता तक में खासियत तलाशना गलत होगा। हमारे प्रधानमंत्री खुद कोझिकोड में उनके बारे में अपना नजरिया यह कहकर पेश कर चुके हैं वह आतंकवादियों द्वारा लिखित पटकथा का पाठ करते हैं। नवाज शरीफ ने संयुक्त राष्ट्र और पाकिस्तानी संसद में अपने वक्तव्यों के साथ अपनी छवि और खराब कर ली।

उनके दो प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों में से पहले इमरान खान तो मानो भारत के साथ जंग ही छेड़ देंगे जबकि दूसरे बिलावल भुट्टो हालिया पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर चुनावों में उसी शिद्दत से शेखी बघारते नजर आए जैसे एक भुट्टो बघार सकता है। अपने नाना और मां की तरह ही। हालांकि अपने नाना या मां की तरह उन्होंने भारत के साथ 1000 साल की जंग की बात नहीं कही। लेकिन उनकी शैली अपनी मां से अलग नहीं थी। जिन्होंने अपनी मुजफ्फराबाद की कुख्यात रैली में धमकी दी थी कि जम्मू कश्मीर के राज्यपाल जगमोहन के टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाएंगे। उन्होंने कहा था, ‘जगमोहन को हम जग-जग-मो-मो-हन-हन कर देंगे।’ इस दौरान वह अपने दाहिने हाथ से काटने का इशारा करती रहीं।

जनरल जिया उल हक के शासन के बाद जबसे पाकिस्तान में लोकतंत्र की वापसी हुई है वहां यह प्रवृत्ति रही है कि निर्वाचित नेता भारत के साथ जंग का मिजाज बनाए रहते हैं। हालांकि अपने कार्यकाल की शुरुआत में वहां के प्रधानमंत्री भारत के प्रति मित्रवत भावना दिखाते हैं। दिसंबर 1988 में इस्लामाबाद में बेनजीर भुट्टो और राजीव गांधी के बीच की बैठक याद कीजिए। सन 1999 में नवाज शरीफ और अटल बिहारी वाजपेयी की बस यात्रा और लाहौर घोषणा, बेनजीर का वापसी की उम्मीद में भारत के प्रति नरम होना, 26/11 की आतंकी घटना के बाद आसिफ अली जरदारी की आईएसआई प्रमुख को भारत भेजने की पेशकश, उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मेजर जनरल महमूद दुर्रानी का यह स्वीकार करना कि हमलावर पाकिस्तानी थे। लेकिन हर बार हुआ क्या? सन 1990 में बेनजीर को पद से हटा दिया गया, 1999 में नवाज शरीफ को जेल हुई और उनका निष्कासन हुआ, सन 2007 में बेनजीर की हत्या, दुर्रानी को हाशिये पर डालना और जरदारी को किनारे करना।

नवाज शरीफ ने अपने जन्मदिन पर नरेंद्र मोदी की मेजबानी की थी और उसके बाद गुरदासपुर और पठानकोट की घटनाएं हुईं। जब उन्होंनेे जैश ए मोहम्मद के खिलाफ जांच की कार्रवाई की घोषणा की तो कश्मीर घाटी में खेल शुरू हो गया। उनके कार्यकाल के आरंभ में भी उनको चेतावनी मिल चुकी थी। पूर्ण बहुमत से आश्वस्त होकर और खास विरोध न होने के चलते अपना कार्यकाल पूरा करने वाला पहला प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद के बीच उनको लगा कि वह देश की राजनीति में आमूलचूल बदलाव ला सकते हैं। ऐसे में यह जरूरी होग या कि वह पहले सेना को उसकी जगह स्थापित करें। उनको और उनके भाई शहबाज को भारी बहुमत मिला था, वह भी भारत या कश्मीर के बारे में कोई बात कहे बगैर। यह बहुमत रोजगार, विकास, बिजली, शहरी परिवहन के मुद्दों की देन था।

उनको लगा कि उनके पास अवसर है। उन्होंने सन 1965 और 1971 के युद्घ नायकों के बीच से पेशेवर पंजाबी सेना प्रमुख का चयन किया। इस उत्साह में उन्होंने मुशर्रफ को राजद्रोह का आरोपी बनाना चाहा। मुशर्रफ के लिए उनके लोगों और सेना के मन में या कहीं भी कोई जगह नहीं बची थी लेकिन उन पर राजद्रोह का मामला सेना को स्वीकार्य नहीं था। सेना ने दबाव बनाया कि मुशर्रफ को जाने दिया जाए।

उनके खिलाफ दो अन्य उपाय प्रयोग में लाए गए: हाल ही में पराजित हुए इमरान खान और कनाडाई पाकिस्तानी मूल के धरना उस्ताद ताहिर उल कादरी ने इस्लामाबाद में सत्ता के केंद्रों पर धरना दिया। वे तब तक वहां से नहीं हटे जब तक सेना ने उनसे अपील नहीं की। नवाज की शक्तिहीनता उनके कमतर कद की वजह बनी। जब पेशावर में सैन्य अधिकारियों के बच्चों को जान से मारा गया तब पूरा देश सेना और सेना प्रमुख के साथ एकजुट था। सेना प्रमुख ने आतंकियों के खिलाफ जो कुछ कहा उसे व्यापक समर्थन मिला। किसी ने यह नहीं कहा कि निर्वाचित सरकार इस बीच क्यों कहीं नहीं दिख रही? निर्वाचित सरकार को हाशिये पर डालने का काम सेना के अल्ताफ हुसैन के मुहाजिर कौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) और कराची में उसके सशस्त्र माफिया के खिलाफ कार्रवाई के साथ पूरा हो गया।

नवाज शरीफ का बतौर प्रधानमंत्री यह तीसरा कार्यकाल है। पहले के दो कार्यकाल वह सेना के कारण ही पूरा नहीं कर पाए। तीसरे कार्यकाल में उनके सामने एक अलग चुनौती है। वह सत्ता में रहते हुए भी शक्तिहीन हैं। सन 1985 से ही मैं उनकी नीतियों पर करीबी नजर रखे हूं और मुझे नहीं लगता कि वह यूं अपमानजनक ढंग से कार्यकाल पूरा करने के इच्छुक होंगे। आने वाले महीनों में कुछ न कुछ देखने को मिलेगा।

इसलिए मैं सीरिल अल्मिदा की डॉन में छपी उस रिपोर्ट को खारिज नहीं करूंगा जिसमें कहा गया है कि शरीफ बंधुओं ने सेना से कहा है कि पिछवाड़े सांप पालने (भारत और अफगानिस्तान से संबंधित समूह) और सामने से हमला कर रहे दुश्मन तहरीके तालिबान पाकिस्तान से लडऩे की उसकी नीति सही नहीं है। आज केवल चीन ही पाकिस्तान के साथ है। यहां तक कि इस्लामिक देश भी बंटे हुए हैं। चीन मसूद अजहर जैसे आतंकी को बचाने के लिए वीटो का प्रयोग कर कब तक शर्मिंदा होगा। यह वही आतंकी है जिसे भारतीय विमान अपहरण के बदले रिहा किया गया था।

सन 1993 और 1999 में नवाज को हटाना आसान था। लेकिन उनको पता है कि फिलहाल तख्तापलट की आशंका बेहद कम है। इससे न केवल पाकिस्तान का वैश्विक अलगाव अंजाम तक पहुंच जाएगा बल्कि ऐसी अस्थिरता अरब देशों को भी भयभीत करेगी। ईरान और चीन भी एक और आईएसआईएस क्षेत्र की आशंका से भयभीत होंगे। भारतीय उपमहाद्वीप पूरी तरह परमाणु हथियारसंपन्न भी है। ऐसे में उम्मीद नहीं कि चीन मौजूदा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का काम चालू रखेगा। इस विचार से आश्वस्त नवाज जनरल राहिल शरीफ की सेवानिवृत्ति तक अपने पत्ते खेल सकते हैं। अमेरिका में भी सैन्य शासन की कोई इच्छा बची नहीं। यही वजह है कि डॉन का शरीफ और उनके भाई के बारे में किया गया दावा सही नजर आता है।

मेरे साथ हुई तमाम बातचीत में सबसे यादगार बात उन्होंने तब कही थी जब 1993 में सेना समर्थित राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान ने उन्हें गद्दी से हटा दिया था। शरीफ ने विशिष्टï पंजाबी कहावत का इस्तेमाल कर कहा था, ‘यह कैसी व्यवस्था है? आधा तीतर, आधा बटेर।’ उन्होंने वादा किया था कि वह अपनी अगली पारी में इसे ठीक करेंगे लेकिन तब वह करगिल, जेल और निर्वासन में उलझ गए। जहां तक मैं उन्हें जानता हूं, वह तीसरी बार प्रयास करेंगे। यही वजह है कि हमें उन्हें एक लड़ाका नेता के रूप में देखना चाहिए। वह अत्यंत ताकतवर रावण या किसी भी तरह के शैतान से अलग हैं। उनके बारे में यही कहा जा सकता है कि सुधार कार्य अभी चालू है।

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