scorecardresearch
Tuesday, November 5, 2024
Support Our Journalism
HomeSG राष्ट्र हितएयर लिफ्ट की असली कहानी

एयर लिफ्ट की असली कहानी

Follow Us :
Text Size:
किसी फिल्म के तथ्यों और इतिहास के मामले में अचूक होने की कितनी अपेक्षा की जा सकती है, फिर चाहे दावा किया गया हो कि यह वास्तविक घटनाओं पर आधारित है? यह सवाल ‘एयरलिफ्ट’ की सफलता से उठा है, युवा निर्देशक राजा मेनन की नई फिल्म। निश्चित ही कुवैत और इराक से डेढ़ लाख से ज्यादा भारतीयों को वापस स्वदेश लाना उल्लेखनीय भारतीय उपलब्धि है और फिल्म बनाए जाने की हकदार है। चूंकि युद्ध अचानक भड़का था और संकट की मार ज्यादातर निम्न मध्य वर्ग के श्रमिकों पर पड़ी, इसलिए कुछ नाटकीयता जायज है। किंतु क्या इसे इतना मिथकीय बना दिया जाना चाहिए था?
फिल्म में बताया गया है कि हर सरकारी एजेंसी ने प्रवासी भारतीयों की दुर्दशा पर लापरवाही दिखाई। इसमें दूतावास भी शामिल है, जिसका स्टाफ या तो भाग खड़ा हुआ या (जैसा बगदाद में) उसने पूरी तरह कन्नी काट ली। विदेश मंत्री ने भी यह कहकर हाथ खड़े कर दिए कि सरकार अस्थिर है और कभी भी गिर सकती है और केवल नौकरशाही ही कुछ कर सकती है, जो स्थायी होती है। यदि भारत वहां अटके पड़े भारतीयों को वापस ला सका तो इसके पीछे सिर्फ ढाई लोग ही थे। इसमें डेढ़ तो बेशक हीरो अक्षय कुमार या रंजीत कतियाल था और दूसरे थे कोहली, विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव, जिनका दफ्तर क्लर्क से भी गया-बीता लगता है, जबकि संयुक्त सचिव बहुत ऊंचा पद है, किसी वरिष्ठ राजदूत के समकक्ष।
कोई बात नहीं। फिल्में उस उबाऊ सरकारी व्यवस्था पर नहीं बनाई जाती, जो कभी-कभी काम करती है। उन्हें संकट, बेबसी, नाटकीयता और अच्छे-बुरे पात्र चाहिए होते हैं, जो मिलकर कहानी बनाते हैं। केवल बॉलीवुड ही काल्पनिक नाटकीयता पैदा करने के लिए वास्तविक घटनाओं को नहीं भुनाता, हॉलीवुड तो और भी बड़े पैमाने पर ऐसा करता है। हाल में चर्चित, ‘एर्गो’ और ‘अमेरिकन स्नाइपर’ इसके अच्छे उदाहरण हैं। पहले भी हमने देखा है कि कैसे कुछ सच्ची घटनाओं को लेकर सफलतापूर्वक भव्य कथाएं रची गई हैं। ‘बॉर्डर’ इसका एक और उदाहरण है, जिसे 1971 के युद्ध के दौरान लोंगेवाला में हुई लड़ाई पर आधारित माना जाता है। वह बेशक उस युद्ध के इतिहास में उल्लेखनीय अध्याय है, लेकिन उसमें वैसा कुछ नहीं था, जो परदे पर दिखाया गया, कम से कम जमीन पर तो नहीं। लोंगेवाला चौकी पर तैनात भारतीय सैनिकों के छोटे-से दस्ते ने मैजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के नेतृत्व में मुख्यालय को पाकिस्तानी टैंक हमले की सूचना देने बाद वहां डटे रहकर हमलावरों को यह अहसास कराया कि उनकी संख्या बहुत ज्यादा है। इससे भारतीय वायुसेना को सुबह तक का वक्त मिल गया, जिसने लहरों की तरह आकर पाकिस्तानी टैंक ध्वस्त कर दिए। जमीन पर किसी प्रकार की कोई लड़ाई नहीं हुई थी। चांदपुरी पूरी तरह महावीर चक्र सम्मान के हकदार हैं, लेकिन सनी देओल ने उनकी भूमिका निभाते हुए जो साहसी काम किए उन्हें देख चाहे वे असहज महसूस न करते पर उन्हें मजा जरूर आया होता।
अब हम जानते हैं कि वास्तविक जिंदगी में कोई सैनिक वैसे नहीं लड़ता जैसा फिल्म में सनी देओल लड़ता है। किंतु उसी तरह स्टेलॉन या श्वाजनेगर या टॉम क्रूज जैसा भी तो कोई नहीं लड़ता, तो नाटकीयता में कोई हर्ज नहीं है। हालांकि, ‘बॉर्डर’ में मूल आधार बिल्कुल ठीक और इतिहास के मुताबिक था। खेद है कि कुवैत से भारतीयों के निकालने का सनी देओलीकरण (इस मुहावरे के उपयोग के लिए माफ करना अक्षय कुमार, लेकिन देओल ही मूल हीरो हैं) करने में ‘एयरलिफ्ट’ ने पूरी तरह इतिहास बदल दिया। फिल्म में जब सरकार संकट से पल्ला झाड़ लेती है और मंत्री महोदय बेबसी जता देते हैं, तब स्थानीय हीरो सामने आता है, सारे भारतीयों को एक कैम्प में इकट्‌ठा करता है और फिर इराक और जॉर्डन के रेगिस्तान में 1100 किमी के सफर में इस काफिले का नेतृत्व करता है। रास्ते में इराकी सैन्य चौकी को ध्वस्त करता है। वह सफलतापूर्वक अपने हमवतनों को सीमा के उस चेकपॉइंट तक ले जाता है, जो उस जगह से दूर नहीं है जहां मूसा ने समुद्र को बांटकर रास्ता बनाया था और कहां था, ‘मेरे लोगों को जाने दो।’
संक्षेप में वास्तविक तथ्य ये हैं। कुवैत 3 अगस्त 1990 को इराकियों के हाथ में आया। एक हफ्ते से भी कम समय में तब के विदेश मंत्री इंद्रकुमार गुजराल बगदाद पहुंच गए थे। उन्होंने कैमरे के सामने सद‌्दाम को गले लगाया और इसके लिए दुनियाभर में उन्हें कोसा गया। किंतु बाद में उन्होंने हमें बताया कि उन्हें अपने लोगों को बचाने के लिए यह करना पड़ा, जिनकी हिफाजत की गारंटी इराक ही दे सकता था। वे कुवैत आए, वहां फंसे भारतीयों से मिले और उनमें से कुछ को अपने आईएएफ-2-76 विमान में बिठाकर ले गए और उसके बाद उन्होंने मानव जाति के इतिहास का सबसे बड़ा एयरलिफ्ट अंजाम दिया। बगदाद में हमारे दूतावास ने एक बस कांट्रेक्टर खोज निकाला ताकि लोगों को अमान तक ले जाया जा सके और जॉर्डन ने तो कभी इराक के साथ अपनी सीमा बंद ही नहीं की थी। पहला एयरलिफ्ट 13 अगस्त को हुआ, हमले के बाद दसवें दिन और लगातार 59 दिनों तक चलता रहा, जब तक कि लौटने का इच्छुक अंतिम भारतीय स्वदेश नहीं पहुंच गया। करीब 10 हजार भारतीय कुवैत में ही बने रहे। उन्हें इराकियों से कोई डर नहीं था, क्योंकि वे भारतीयों के प्रति दोस्ताना रवैया रखते थे और उन्होंने जान-बूझकर कभी भारतीयों को चोट नहीं पहुंचाई। इसलिए इस फिल्म की वास्तविकता से कोई समानता ही नहीं है।
एक फुटनोट : मैंने इंडिया टुडे के लिए शुरू से आखिर तक खाड़ी युद्ध कवर किया था। बगदाद में शुरुआती बमबारी, इजराइल पर स्कड मिसाइलें और अंतत: कुवैत की मुक्ति। अमान यात्रा करने के लिए आधार स्थल था, क्योंकि यहां से आप बगदाद और यरूशलम दोनों शहरों में जा सकते थे। हमने कतियाल जैसे किसी व्यक्ति के बारे में कभी नहीं सुना। बेशक सनी मैथ्यू थे, जिन्हें टोयाटो सनी कहा जाता था, क्योंकि उनके पास इस कार कंपनी की एजेंसी थी। एक बहुत ही नफासत भरे व्यक्ति थे श्रीमान वेदी, जिन्होंने भारतीय समुदाय की बहुत मदद की। मेरे फोटोग्राफर सहयोगी प्रशांत पंजियार और मैं सौभाग्यशाली थे कि वहां पहुंचते ही उनसे मुलाकात हो गई। चारों तरफ मलबा पड़ा था, आसमान तेल कुओं में लगी आग के धुएं से काला हो गया था और हर तरफ नष्ट हुए इराकी टैंक पड़े हुए थे। उन्होंने हमारी देखभाल की, हमें खिलाया-पिलाया, एक खाली पड़ा घर दिखाया, जिसमें हम बिना अधिकार घुस सकते थे, जैसे कि हर कोई कर रहा था- सौभाग्य से वहां खाने की चीजों से भरा डीप फ्रीजर था। उन्होंने हमें संकट की कई कहानियां सुनाईं। वे और सनी बहुत बहादुर और अच्छे भारतीय थे, लेकिन खेद है कि उस कहानी से इन सबका कोई दूर का भी साम्य नहीं है, जिसे हम आजकल परदे पर देखकर खुश हो रहे हैं।

Subscribe to our channels on YouTube, Telegram & WhatsApp

Support Our Journalism

India needs fair, non-hyphenated and questioning journalism, packed with on-ground reporting. ThePrint – with exceptional reporters, columnists and editors – is doing just that.

Sustaining this needs support from wonderful readers like you.

Whether you live in India or overseas, you can take a paid subscription by clicking here.

Support Our Journalism

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular