जब रविवार के वनडे मैच में मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में दक्षिण अफ्रीका के बल्लेबाजों का कत्लेआम चरम पर था, बीसीसीआई पर एक तरह का पागलपन (कम से कम मेरे पक्षपाती नज़रिये से तो) सवार हो गया। इसने इस सवाल पर ट्विटर पोल शुरू कर दिया कि हमने क्विंटन डि कॉक या डू प्लेसिस में से किसकी बल्लेबाजी का ज्यादा लुत्फ उठाया। भारतीय क्रिकेटप्रेमी के रूप में मुझे इस हरकत ने बहुत उत्तेजित कर दिया। करोड़ों अन्य भारतीय क्रिकेटप्रेमी भी नाराज हुए होंगे। खास बात तो यह है कि तब डिविलियर्स ने बल्लेबाजी शुरू ही की थी।
मैं इतना कट्टर क्रिकेटप्रेमी हूं कि ऐसे मजाक को यूं ही नहीं ले सकता। फिर मैंने पत्रकारिता का दिखावा तत्काल छोड़ा और बीसीसीआई को टैग करके तंज किया कि उन्होंने किसकी बल्लेबाजी का सबसे ज्यादा मजा लिया? और वे भारतीय टीम के साथ हैं या विपक्षी टीम के साथ? वे घावों पर नमक क्यों छिड़क रहे हैं? जिन लोगों ने जवाब दिया, उन्होंने कहा कि मुझे बड़े दिल वाला होना चाहिए, क्योंकि यह तो खेल है और दक्षिण अफ्रीकी बल्लेबाजों द्वारा हमारे गेंदबाजों के धुर्रे बिखेरने का भी हम आनंद ले सकते हैं। मुझसे पूछा गया कि उदारता और विविधता के प्रति मेरा प्रेम कहां गायब हो गया? मेरेे पास छोटा-सा जवाब है। जब क्रिकेट की बात आती है तो उदारता, बड़ा दिल होना या पक्षपातहीन होने जैसी कोई बात नहीं चलती। जब भारत किसी भी खेल में दूसरे देश के खिलाफ खेल रहा हो तो हममें से ज्यादातर लोग आंखें बंदकर पक्षपाती हो जाते हैं। निश्चित ही मैं भी उनमें से ही हूं। खेलप्रेमी दिल से सोचते हैं और ऐसा करने के लिए उन्हें माफ कर देना चाहिए। किंतु इसका मतलब यह नहीं कि हमारे खेल प्रशासक भी अपने दिमाग का इस्तेमाल करना बंद कर दें। मुझे विश्वास है कि वानखेड़े के क्यूरेटर ने पिच तैयार किया था और रवि शास्त्री ने इस मामले के इन-चार्ज पूर्व टेस्ट क्रिकेटर सुधीर नाईक से शिकायत की होगी। मुझे नहीं पता कि उन्होंने कैसी भाषा का प्रयोग किया। किंतु क्रिकेटप्रेमी के रूप में मैं बीसीसीआई से कुछ कड़ी बातें कहना चाहूंगा।
पिच को बल्लेबाज के इतना अनुकूल बनाने का क्या मतलब है कि पूरी सीरीज टॉस पर खेली जाने वाली लॉटरी बनकर रह जाए। पहले बल्लेबाजी के लिए जो अच्छा है वह बाद में बल्लेबाजी के लिए होगा, यह तर्क दिन-रात के मैच में हमेशा नहीं चलता। कहने का आशय यह नहीं कि यदि भारतीय टीम पहले बल्लेबाजी करती तो वह 400 रन बना देती, लेकिन इस तरह के विकेट पर पहले बल्लेबाजी में आपको वह तोहफा मिल जाता है, जिसे दक्षिण अफ्रीकी कप्तान डीविलियर्स ने बिल्कुल ठीक ‘स्कोरबोर्ड प्रेशर’ कहा है। क्रिकेट में घरेलू बोर्ड द्वारा अपनी टीम के अनुकूल विकेट तैयार करना बिल्कुल सामान्य बात है। केवल भारत में ही हम पर पिछले कुछ समय से ‘स्पोर्टिंग’ विकेट तैयार करने का भूत सवार हुआ है। यह नीति विनाशकारी सिद्ध हुई है। इससे आप बेहतर फिरकी गेंदबाजी करने और इसके खिलाफ अधिक कौशल के साथ बैटिंग करने की अपनी ताकत गंवा देते हैं।
इसके साथ यह विपक्षी टीम को, खासतौर पर यदि पहले बल्लेबाजी करने को मिल जाए तो विशाल स्कोर खड़ा करने में मदद मिल जाती है फिर चाहे टेस्ट मैच हो या वनडे। जब भारतीय टीम विदेश में खेलने जाती है तो कोई देश ‘स्पोर्टिंग’ विकेट नहीं बनाता। ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका उछाल वाले पिच बनाते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि कलाई के जादूगर हमारे बल्लेबाजों को उछाल लेती गेंदें दबाने में मुश्किल आएगी। खासतौर पर तब जब उनके पास सुपरफास्ट गेंदबाज हों, जो साधारण लंबाई से भी गेंद को उछाल सकते हैं। इंग्लैंड में पिच पर घास छोड़ दी जाती है, क्योंकि उनके पास जेम्स एंडरसन के नेतृत्व में पिछले कुछ समय से दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सीम गेंदबाजी है। वे घूमती हुई गेंद को खेलते भी बहुत अच्छे हैं खासतौर पर तब जब यह अौसत रफ्तार से आती हुई हो। हमने इनमें से हर देश के दौरे में उनकी इस रणनीति को भुगता है। हमारे बल्लेबाज बाउंस से निपट नहीं पाते और हमारे मध्यम तेज गंेदबाज उसका इस्तेमाल नहीं कर पाते। विदेशों में हमारे प्रदर्शन में यह साफ नज़र आता है। मजे की बात यह कि जब भी इन देशों ने वाकई सीमर अनुकूल पिच तैयार किए हैं जैसाकि पर्थ 2008, जोहानिसबर्ग 2006 और हैडिंग्ले 2002 में, तो भारतीय टीम ने अच्छा प्रदर्शन कर जीत हासिल की है।
वर्ष 2001 के बाद सौरव गांगुली के मातहत भारतीय क्रिकेट का उत्थान शुरू हुआ। यह पांच विश्वस्तरीय बल्लेबाज (सहवाग, द्रविड़, सचिन, लक्ष्मण और सौरव), दो विश्वस्तरीय स्पिनर (कुंबले, हरभजन) और एक या दो अत्यधिक कुशल सीमर श्रीनाथ, श्रीसंत और ज़हीर के आधार पर हुआ। यदि स्विंग वाली परिस्थितियों में सीमर शुरुआती विकेट ले लेते तो भारत मैच में हावी हो जाता है। दूसरी तरफ भारत में हमारा दारोमदार फिरकी गेंदबाजी पर रहा है और हमेशा रहेगा। यदि हमारे पिच कम उछाल वाले और धूलभरे हैं (जरा देखें कि पाकिस्तान अपने ‘घरेलू’ टेस्ट मैचों के लिए संयुक्त अरब अमीरात में कैसे पिच बनवा रहा है) तो कई बातें होती हैं। एक, विदेशी बल्लेबाज उछाल के अभाव में खुले हाथ से रन नहीं बना सकते, जबकि कलाई का प्रयोग करने वाले हमारे बल्लेबाज खुलकर खेल पाते हैं। दो, पहले दिन से ही हमारे फिरकी गेंदबाज हावी हो जाते, जबकि हमारे ज्यादातर बल्लेबाज िवदेशी स्पिनरों को टूटते पिच पर भी अच्छी तरह खेल सकते हैं।
सबसे मजेदार बात तो यह है कि हमारे सीमर भी ऐसे पिचों पर ज्यादा असरदार साबित होते हैं। उबड़-खाबड़, सूखे पिच गेंद को जल्दी घिस देते हैं, जिससे रिवर्स स्विंग करना आसान होता है और चूंकि गेंद नीची रहती है तो एलबीडब्ल्यू ज्यादा होते हैं। देखें कि जहीर और श्रीनाथ घरेलू पिचों पर कितने प्रभावी रहे हैं। श्रीनाथ ने विदेश में खेले 35 टेस्ट में 33.76 के औसत से 128 विकेट लिए जबकि घरेलू पिच पर 32 टेस्ट में 26.61 के औसत से 108 विकेट लिए हैं। कहने का मतलब यह नहीं कि भारतीय सीमरों ने घरेलू फिरकी विकेट पर विदेशों जैसा अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन तथ्य यही है कि उन पिचों ने उन्हें वैसे बेअसर नहीं बनाया जैसे उन्होंने स्पिनरों को बनाया। घरेलू फिरकी पिचों पर हमारे बल्लेबाजों ने किसी भी टीम के खिलाफ अच्छा प्रदर्शन किया है। अपवाद सिर्फ 2012 का इंग्लैंड दौरा रहा।
बीसीसीआई ने घरेलू क्रिकेट के लिए हरे विकेट बनाकर बहुत बड़ी गलती की है। इन पर कर्नाटक के विनय कुमार भी घातक सीमर बन जाते हैं, लेकिन विदेशी टीम आती है तो वे वानखेड़े जैसी आत्मघाती ‘फ्लैट ब्यूटी’ तैयार करते हैं। बेशक, हमें अपने क्रिकेट को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाना है, लेिकन टीम को घरेलू पिचों के फायदों से वंचित रखकर ऐसा नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि मुझे क्रिकेटप्रेमी के रूप में बीसीसीआई ने इस वनडे सीरीज में जो किया है, उस पर इतना गुस्सा है।