भीमा-कोरेगांव हिंसा के आरोपित खेल रहे हैं ‘दलितों से प्यार’ का कार्ड
PoliticsReportThePrint Hindi

भीमा-कोरेगांव हिंसा के आरोपित खेल रहे हैं ‘दलितों से प्यार’ का कार्ड

धार्मिक नेता संभाजी भिड़े का सभी दलों में समर्थन है; मिलिंद एकबोटे पूर्व भाजपा पार्षद हैं, जो हिंदुत्व के अपने एजेंडे की वजह से सुर्खियों में रहते हैं.

   
Police arrive to control the situation after an incident of violent clash at Ambedkar Nagar

Police arrive to control the situation after an incident of violent clash at Ambedkar Nagar. PTI Photo

धार्मिक नेता संभाजी भिड़े का सभी दलों में समर्थन है; मिलिंद एकबोटे पूर्व भाजपा पार्षद हैं, जो हिंदुत्व के अपने एजेंडे की वजह से सुर्खियों में रहते हैं.

मुंबई। सांगली का एक धार्मिक नेता, जिसके पीछे काफी संख्या में युवा हैं और महाराष्ट्र चुनाव-प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी भी मिले थे.

पुणे स्थित एक हिंदूवादी कार्यकर्ता जो राजनीति में उतरा और सुर्खियों में बना रहता है.

इन दो लोगों को दलित समूहों ने कथित तौर पर भीमा-कोरेगांव हिंसा का आरोपी ठहराया है.

पिंपरी-चिंचवाड़ पुलिस ने श्री शिव-प्रतिष्ठान के अध्यक्ष 85 वर्षीय संभाजी भिड़े और समस्त हिंदू अघाड़ी के नेता 56 वर्षीय मिलिंद एकबोटे को अनुसूचित जाति एवं जनजाति (प्रिवेंशन ऑफ अट्रॉसिटीज एक्ट) के तहत ‘बुक’ किया है. दोनों ही संगठनों ने किसी भी तरह की संलग्नता से इंकार किया है.

‘गुरुजी’ भिड़े के बचाव में

अविनाश मरकले शिवप्रतिष्ठान में नेता हैं. वह कहते हैं, “पिछले 30 वर्षों से हमारा संगठन अस्तित्व में है और भिड़े गुरुजी ने कभी भी जाति या संप्रदाय की बात नहीं की. हम उस तरह से देखते ही नहीं हैं। हमारी विचारधारा हिंदुत्व के लिए है, छत्रपति शिवाजी महाराज के आदर्शों को बढ़ावा देने और देश की भलाई के लिए काम करने की है”.

मरकले ने कहा कि भिड़े उस दिन सांगली में थे, जब भीमा-कोरेगांव में हिंसा भड़की. उन्होंने न तो कोई फोन लिया और न ही किसी को फोन किया. वह राकांपा नेता और पूर्व मंत्री जयंत पाटिल की सांत्वना-सभा में सांगली में थे औऱ बाद में भोर तालुका में उन्होंने एक सार्वजनिक सभा को संबोधित किया.

मरकले ने यह भी कहा कि शिव-प्रतिष्ठान का वाढु बुडरुक में घटी घटना से भी कोई लेना-देना नहीं है, जो भीमा-कोरेगांव से कुछ ही किलोमीटर दूर है. वहां दलित गोविंद गायकवाड़ के समाधि-स्तंभ को लेकर पहले ही झड़प हो चुकी थी. गोविंद के बारे में कहा जाता है कि शिवाजी के बेटे संभाजी का अंतिम संस्कार उन्होंने किया था. ये झड़प 1 जनवरी को हुए भीमा-कोरेगांव हिंसा का पूर्वाख्यान थे, जिसमें एक व्यक्ति मारा गया और कई घायल हुए.

मरकले कहते हैं, “वहां जो भी हुआ, वह पूरी तरह से गांववालों के कारण हुआ. हमें किसी भी ऐतिहासिक घटना की दलित-व्याख्या से कुछ नहीं लेना है, क्योंकि हमारे पूरे राज्य में हज़ारों स्वयंसेवक हैं और हमने कभी किसी की जाति नहीं पूछी”.

जब भिड़े सुर्खियों में आए

महाराष्ट्र के चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भिड़े से मुलाकात कर उन्हें एक प्रेरणास्रोत बताया था, हालांकि उनके बारे में यह भी कहा जाता है कि ढका-छिपा समर्थन उनको हरेक दल का ही है. एक स्थानीय नेता कहते हैं, “सांगली-कोल्हापुर में हरेक राजनीतिक दल से युवा स्वयंसेवक उनकी गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं”.

2008 में भिड़े ने सांगली में फिल्म जोधा-अकबर की सांगली में स्क्रीनिंग होने पर विरोधों को हवा दी, जिसमें आखिरकार पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। प्रतिक्रिया में भिड़े के समर्थकों ने पत्थर चलाए. उस वक्त कांग्रेस-राकांपा गठबंधन की सरकार को भिड़े पर मुलायम रहने का आरोप लगा था.

हाल ही में, इस साल जून में पुणे पुलिस ने भिंड़े और उनके समर्थकों पर वारी (पंढरपुर तक जानेवाली वरकरी जुलूस) में बाधा डालने के खिलाफ मामला दर्ज किया था.

स्थानीय तौर पर, भिड़े जो पहले आरएसएस के साथ थे, को साधारण, बहुशिक्षित व्यक्ति माना जाता है, जिसके पास परमाणु विज्ञान में डिग्री और युवाओं को लुभाने का जानदार गुर है. हिंदुत्व औऱ शिवाजी की सीखों के बारे में भाषण देने के अलावा युवाओं को शिवाजी के विभिन्न किलों की सैर कराने का काम शिव-प्रतिष्ठान आम तौर पर करता है.

एकबोटे, एकल व्यक्ति-संस्थान

इसके उलट, पुणे के मिलिंद एकबोटे को न तो भारी जनसमर्थन है, न ही सभी पार्टियों में पैठ। पुणे स्थित एक भाजपा नेता कहते हैं, “वह ही उनका संगठन हैं और उनका संगठन वही हैं. वह हिंदुत्व की बात करते हैं, लेकिन किसी भी वर्ग या संप्रदाय के लिए डटते नहीं। वह मौकापरस्त हैं, जो अपना व्यक्तिगत एजेंडा चलाते हैं”.

एकबोटे ने अपना फोन बंद कर रखा है और प्रतिक्रिया के लिए उपलब्ध नहीं हैं, हालांकि उन्होंने भीमा-कोरेगांव हिंसा की निंदा करते हुए मीडिया में वक्तव्य जारी किया है. इसमें कहा गया है, “कुछ समूह मौके का फायदा उठाकर मुझे औऱ मेरे संगठन को बदनाम कर रहे हैं। मेरे संगठन में अच्छी-खासी संख्या में दलित हैं और हम डॉ. भीमराव अंबेडकर को अपने आदर्शों में एक मानते हैं”.

पहले एकबोटे संघ के थे और उनका परिवार संघ के स्वयंसेवकों का है. उनकी भाभी ज्योत्सना एकबोटे पुणे से भाजपा पार्षद हैं. मिलिंद खुद भी राजनीति में उतरे. एक बार भाजपा पार्षद रहे और फिर 2014 में शिवसेना के टिकट पर विधानसबा चुनाव लड़कर बुरी तरह भाजपा उम्मीदवार से हारे.

हालांकि, उनका समस्त हिंदू अघाड़ी के जरिए वह हिंदुत्व संबंधी मुद्दे, जैसे गोमांस ले जाने के संदेह में टेंपो को रुकवाना, पुणे में हज हाउस प्रोजेक्ट का विरोध करना और सनातन संस्था को समर्थन देना, जबकि सरकार उस पर बैन चाहती हो, उछालते रहते हैं. दिसंबर 2014 में एकबोटे ने समारोहपूर्वक धनंजय देसाई को हिंदुत्व-शौर्य पुरस्कार से भी सम्मानित किया. धनंजय हिंदू राष्ट्र सेना के अध्यक्ष हैं और पुणे के मुस्लिम तकनीकविद मोहसिन शेख की हत्या में आरोपित हैं.

2014 चुनाव में दाखिल किए गए हलफनामे के मुताबिक एकबोटे के ऊपर 12 मुकदमे हैं, जो आपराधिक धमकी, हमला, वेश्यावृत्ति, सार्वजनिक गुंडागर्दी और पूजा स्थलों को नुकसान पहुंचाने आदि के संबंध में दर्ज हुए हैं.