scorecardresearch
Tuesday, November 5, 2024
Support Our Journalism
HomeDefenceभारतीय मिसाइल कार्यक्रम को बड़ा धक्काः एक सप्ताह में दो असफलताएं

भारतीय मिसाइल कार्यक्रम को बड़ा धक्काः एक सप्ताह में दो असफलताएं

Follow Us :
Text Size:

22 दिसंबर को सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल का और उससे पांच दिन पहले पनडुब्बी का असफल परीक्षण न्यूक्तियर ट्रायड के विस्तार के लिए चिंताजनक है.

नयी दिल्लीः भारतीय मिसाइल विकास कार्यक्रम को एक सप्ताह के अंदर दो लगातार असफलताओं से गहरा धक्का लगा है. यह भी चिंताजनक है कि पनडुब्बी पर से चालित नाभिकीय मिसाइल का असफल टेस्ट के दौरान उसके परीक्षण स्थल में फंसा रह गया.

सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि हाल ही में ओडीशा के चांदीपुर में 22 दिसंबर को सतह से आकाश तक त्वरित प्रतिक्रिया में मार करनेवाली मिसाइल (क्यूआरएसएएम) का परीक्षण असफल हो गया. मिसाइल उड़ने के 1.5 सेकंड के अंदर में ही गिर गया, क्योंकि एक एक्चुएटर (मिसाइल का एक पुर्जा) ने सॉफ्टवेयर कमांड को नहीं समझा.

क्यूआरएसएएम (क्विक रिएक्शन सरफेस टू एयर मिसाइल) का विकास रक्षा शोध और विकास संगठन (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन यानी डीआरडीओ) कर रहा है ताकि भारतीय वायुसेना की बिल्कुल तुरंत जरूरी आवश्यकताओं को पूरा कर सके. इसका उद्देश्य आकाश जैसी छोटी दूरी के सतह से हवा में मार करनेवाली मिसाइलों का पूरक बनना था. इसे मिसाइल और फाइटर जेट जैसे आकाशीय हमलों को बहुत ही कम समय के नोटिस पर विफल करने हेतु बनाया जा रहा है. यह मिसाइल का तीसरा परीक्षण था.

सबसे चिंताजनक एसएसबीएम (सबमरीन लांच्ड बैलिस्टिक मिसाइल) k-4 की असफलता है, जिसे भारत के नाभिकीय त्रिशूल में जड़ा जा रहा था,ताकि पानी के अंदर से लंबी दूरी के लक्ष्यों को भेदा जा सके.

17 दिसंबर को हुए परीक्षण में असफलता हाथ लगी, जब मिसाइल पानी के अंदर के पैंटून से नहीं चल सकी। 3,500 किमी तक की क्षमता वाली मिसाइल को आइएनएस अहिहंत और अरिहंत नाभिकीय पनडुब्बी पर आक्रमण के दूसरे विकल्प के रूप में लगाना है.

सूत्र बताते हैं कि के-4 मिसाइल परीक्षण के दौरान नहीं चले और कमांड देने के समय इसकी बैटरी खत्म हो चुकी थी। यह भी माना जाता है कि डीआरडीओ के वैज्ञानिक असफलता के बाद इसे पानी के अंदर के परीक्षण-पैंटून से भी नहीं हटा सके, जिसने कार्यक्रम की सुरक्षा पर काफी संदेह पैदा कर दिया है.

भारत की एकमात्र नाभिकीय मिसाइल ले जानेवाली पनडुब्बी आइएनएस अरिहंत पर फिलहाल 750 किमी की क्षमता वाली एसएलबीएम लगी हुई हैं. हालांकि, मिसाइल की सीमित क्षमता और अरिहंत को कार्य लायक बनाए रखना भी नाभिकीय त्रिशूल की प्रभाविता पर सवाल खड़े करता है.

3500 किमी की क्षमता वाले के-4 मिसाइल ही खेल बदलनेवाले हैं, जो भारत को सभी संभावित लक्ष्यों पर दूसरे आक्रमण के लायक बनाएंगे. इसे पहले भी हालांकि तीन बार पहले परीक्षित किया जा चुका है, लेकिन पिछले हफ्ते के असफल परीक्षण ने गंभीर चिंता खड़ी कर दी है, क्योंकि कुछ समय बाद मिसाइल को आइएनएस अरिहंत से चलाकर परीक्षण होना था. फिलहाल, सावधानी के साथ इस बात का पता चल रहा है कि परीक्षण की असफलता की ठोस वजह बता चले और फिर यह मूल्यांकन भी कि क्या पनडुब्बी से लांच के लिए सुरक्षा पर कुछ संदेह पैदा होंगे?

डीआरडीओ ने K-5 पर भी काम शुरू कर दिया है, जो 5000 किमी क्षमता वाली एसएलबीएम है. वह नाभिकीय शक्ति संपन्न पनडुब्बियों पर फिट हो सकती है, साथ ही भविष्य के लिए K-6की भी सोच है, जो पानी के अंदर से लांच होगा औऱ जिसकी क्षमता 6000 किमी तक की होगी.

Subscribe to our channels on YouTube, Telegram & WhatsApp

Support Our Journalism

India needs fair, non-hyphenated and questioning journalism, packed with on-ground reporting. ThePrint – with exceptional reporters, columnists and editors – is doing just that.

Sustaining this needs support from wonderful readers like you.

Whether you live in India or overseas, you can take a paid subscription by clicking here.

Support Our Journalism

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular