क्राॅस-बार्डर डेट: एक प्यार जो सीमाओं की परवाह नहीं करता
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क्राॅस-बार्डर डेट: एक प्यार जो सीमाओं की परवाह नहीं करता

भारत-पाक की दुश्मनी के बावजूद, अमृतसर और लाहौर के युवा टिंडर और ग्रिंडर जैसे एप का इस्तेमाल कर सीमा पार के लोगों के साथ वर्चुअल डेट कर रहे हैं.

   
Tinder and Grindr

The 'Grindr' and 'Tinder' app logos | Leon Neal/Getty Images

भारत-पाक की दुश्मनी के बावजूद, अमृतसर और लाहौर के युवा टिंडर और ग्रिंडर जैसे एप का इस्तेमाल कर सीमा पार के लोगों के साथ वर्चुअल डेट कर रहे हैं.

21 वर्ष के सिद्धार्थ* और 27 वर्ष के अली* की मुलाकात जून 2016 में समलैंगिकों की डेटिंग एप ग्रिंडर पर हुई थी. उसके बाद से उन्होंने फिल्मों पर बात की, एक दूसरे से वीडियो चैटिंग की और कुछ बार ‘सेक्स्ट’ यानी यौन संबंधी बातचीत भी की.

हालांकि, एक छोटी समस्या हैः दोनों को ही भारत-पाकिस्तान की सीमा ने जुदा कर रखा है.

भारत और पाकिस्तान के बीच तमाम शत्रुता के बावजूद रूढिवादी अमृतसर और शहरी लाहौर में युवा टिंडर और ग्रिंडर जैसे एप का इस्तेमाल कर रहे हैं- जो लोगों को उनकी रिहाइश के आधार पर मिलवाते हैं- ताकि सीमापार के लोगों से आभासी मित्रता कर सकें. हालांकि, व्यक्तिगत तौर पर मिलना मुश्किल होता है, लेकिन सीमा के पार समान मनस्थिति के लोगों से मिलने की इच्छा और उत्सुकता ने इन संबंधों को हवा दी है.

अमृतसर में टिंडर का इस्तेमाल करने वाली 23 वर्षीय शिवानी* कहती हैं, ‘जितने पाकिस्तानियों से मेरा मैच हुआ, वे आकर्षक तो थे ही. हां, एक कौतूहल भी जरूर ही था’.

हालांकि, यह वर्जित प्यार भले ही उत्तेजक लगे, इसका अंत हमेशा परी-कथाओं की तरह नहीं होता.

वीर-ज़ारा वाली फ़ंतासी

किसी भारतीय और पाकिस्तानी के बीच वीर-ज़ारा की तरह प्रेम कहानी की फंतासी का अपना आकर्षण है और हरेक व्यक्ति यह तो मानता ही है कि इस तरह का सपना उनको उकसाता तो है ही.

सिद्धार्थ के पाकिस्तान में छह मैच मिले और वह कहते हैं, ‘यह सीमा के पार किसी से मिलने की उत्तेजना मात्र है’.

दिप्रिंट ने जितने लोगों से बात की, उसमें पाकिस्तानी उपभोक्ताओं का प्रतिशत इन डेटिंग एप्स पर अधिक है, क्योंकि लाहौर जैसे महानगर में टिंडर को अपनानेवाले गुरदासपुर और इसके पड़ोसी ज़िलों के मुकाबले अधिक हैं.

“ह्वाई लॉयटर?” नाम से अभियान चालनेवाली समाजशास्त्री शिल्पा फड़के कहती हैं, ‘यह सचमुच रोमांचक है कि लोग सीमा के आरपार दोस्ती और संबंध को चाह रहे हैं और पसंद कर रहे हैं. यह हमें याद दिलाता है कि हमारी जिंदगी या संबंधों को नियंत्रण रेखा नहीं निर्धारित करती’.

स्वाइप, मैच, चैट (लेकिन, राजनीति नहीं)

कोई यह अनुमान कर सकता है कि दोनों देशों के बीच की दुश्मनी व्यक्तिगत संबंधों को प्रभावित करती होगी. इसके उलट, सर्वाधिक विवादास्पद बात-राजनीति- पर अधिक चर्चा नहीं होती.

ग्रिंडर इस्तेमाल करने वाले उत्सव माहेश्वरी कहते हैं, ‘हमने राजनीति पर थोड़ी बात की, लेकिन अधिक आलोचना नहीं की. मुझे याद है कुछ बार हिंदुत्व बीच में आया था”.

टिंडर इस्तेमाल करनेवाले मनजीत* कहते हैं कि जिन लोगों से उनकी बात हुई, वे भारत के राजनीतिक वातावरण के बारे में बहुत अधिक रुचि नहीं ऱखते थे.

मनजीत बताते हैं, ‘हमने उस वक्त बातचीत शुरू की, जब नवाज शरीफ भारत आए थे. इसलिए, मुझे याद है कि हमने उनकी पत्नी की खरीदारी और उस तरह की चीजों पर अधिक बात की थी’.

शिवानी स्वीकार करती हैं, ‘मैं इस भंगुर, लेकिन खास रिश्ते को नहीं तोड़ना चाहती थी. मैं किसी भी नकारात्मक चीज पर बात नहीं करना चाहती थी’.

हालांकि, अधिकतर बातचीत साझा विषयों पर होती है, जैसे बॉलीवुड की फिल्में किस तरह पाकिस्तानी फिल्मों से बहतर हैं, लेकिन पाकिस्तानी टीवी सीरियल किस तरह बेहतर हैं?

उत्सव बताते हैं कि उन्होंने उर्दू केवल अपने दोस्त से बातचीत के लिए सीखी और किस तरह एक बार देसी की परिभाषा को लेकर उनका झगड़ा हुआ था.

27 वर्ष के हसन शेख लाहौर में रहते हैं, टिंडर का इस्तेमाल करते हैं. वह बताते हैं, ‘तुलना गलत शब्द है. यह हमारी समानता के बारे में अधिक है. हम अंदर से एक हैं. हमारी संस्कृति एक है, हमारा लोकेशन एक है, हमारी भाषा एक है, हमारी जड़ें एक हैं’.

काश…काश…काश…

सीमापार प्रेम कहानी अतिशय सम्मोहक और नॉस्टैल्जिया से भरी होती है. अधिकांश स्वीकार करते हैं कि ज्यादातर वर्चुअल बातचीत हमेशा अफसोस औऱ दुख से खत्म होती है.

सिद्धार्थ अली से थाइलैंड में मिलने की योजना बना रहे हैं. वह कहते हैं, ‘काफी बातचीत ‘काश’ से शुरू और खत्म होती है. मैं जिससे भी बात करता हूं, उसकी यही बात होती है कि काश हमारे नेताओं ने देश का विभाजन नहीं किया होता, या फिर अगर सीमाएं नहीं होतीं तो मिलना इतना मुश्किल न होता’.

टेंडर और ग्रिंडर को ‘हुकअप-एप्स’ भी कहा जाता है, जहां लोग कैजुअल सेक्स या फिर केवल साथ के लिए एक-दूसरे को पसंद करते हैं.

हालांकि, इन हालात में मिलना आसान नहीं है- हमारे विदेश सचिवों की ही तरह.

19 वर्षीय उत्सव बताते हैं, ‘हमें जब महसूस हुआ कि हम वास्तव में नहीं मिल सकते, तो एक अंधे मोड़ की ओर हम बढ़ गए. उन्होंने पाकिस्तान के बेहतरीन संस्थानों में एक लाहौर यूनिवर्सिटी में मैनेजमेंट की पढ़ाई के लिए आवेदन भी किया था, हालांकि उनकी मां ने उनको व्यावहारिक बनने की सलाह दी’.

व्यावहारिकता इनकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा है और इन एप का इस्तेमाल करनेवालों ने दुबई और थाइलैंड जैसी तटस्थ जगहों पर मिलने की भी योजना बनायी है.

मनजीत कहते हैं कि मज़ाक में उन लोगों ने वाघा बोर्डर पर मिलने की भी बात की, वह कभी हालांकि पूरा नहीं हुआ.

धुंधली रेखाएं

इन सभी के लिए सीमा एक कठोर सच्चाई है, भले ही वर्चुअल दुनिया में इसकी रेखाएं धुंधला जाएं.

मनजीत ने खुलासा किया कि सीमापार की एक लड़की से पहली बातचीत के बाद उसने अपने दादा से पाकिस्तान में मौजूद अपने घर के बारे में बात की, जहां वे बंटवारे के पहले रहते थे. उन्होंने अपने दादाजी से उनके पड़ोसियों और इलाके के बारे में जानकारी ली. उसके बाद उन्होंने सीमापार के अपने दोस्त को वह सारी बातें बतायीं.

वह कहते हैं, ‘उसने मुझे कहा कि अगली बार वह जब भी रावलपिंडी जाएगी, वह मेरे दिए पते पर भी जाएगी और मुझे पुराने घर की तस्वीरें भेजेंगी. मुझे उम्मीद है’.

क्या किसी रिश्ते में ‘एक दिन’ का इंतज़ार कर निवेश करना ठीक है, जो संबेध वास्तव में सिरे नहीं चढ़ सके?

सिद्धार्थ पूछते हैं, ‘आप जानते हैं कि वे आपको नुकसान नहीं पहूंचा सकते, तो थोड़ी देर के लिए प्यार ही क्यों न कर लें, चाहे वो कितना ही खयाली क्यों न हो’.

नोटः कुछ नाम (*) उनके अनुरोध पर बदल दिए गए हैं.