लालू थे विपक्षी एकता की मजबूत कड़ी जिसपर चारा-घोटाला की काली छाया मंडराई
OpinionPoliticsThePrint Hindi

लालू थे विपक्षी एकता की मजबूत कड़ी जिसपर चारा-घोटाला की काली छाया मंडराई

चूंकि अधिकतर क्षेत्रीय दलों में पीढ़ीगत बदलाव आ रहा है, लालू इन दलों की एकता की चाबी हो सकते हैं. यदि वह कोर्टे के ही मामलों में उलझे रहे, तो यह भाजपा को दी जा रही विपक्षी चुनौती को प्रभावित करेगा.

Lalu Prasad Yadav | Photo by Pradeep Gaur/Mint via Getty Images

Lalu Prasad Yadav| Pradeep Gaur/Mint via Getty Images

चूंकि अधिकतर क्षेत्रीय दलों में पीढ़ीगत बदलाव आ रहा है, लालू इन दलों की एकता की चाबी हो सकते हैं. यदि वह कोर्टे के ही मामलों में उलझे रहे, तो यह भाजपा को दी जा रही विपक्षी चुनौती को प्रभावित करेगा.

पिछले सप्ताह ही सीबीआई अदालतों ने क्षेत्रीय दलों के नेताओं से जुड़े मामलों में दो फैसले सुनाए हैं. इन फैसलों को सुनाने का समय महत्वपूर्ण है, खासकर उन विपक्षी दलों के लिए जो 2019 के आम चुनाव से पहले अपना घर ठीक कर रहे थे.

2जी मामलों पर फैसले ने द्रविड़ मुनेत्र कझगम (द्रमुक) के खेमे में खुशी फैलाई और उस पर लगे अछूत के तमगे को भी हटाने में मदद की. हालांकि, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के खेमे में चारा घोटाले पर फैसले ने मायूसी ला दी. बुरा तो यह है कि लालू प्रसाद यादव के जाने से विपक्षी दलों के बहु-प्रतीक्षित, विभिन्न पार्टियों को जोड़नेवाले महागठबंधन पर भी असर पड़ा है.

कोढ़ में खाज यह कि फैसले के साथ ही आय से अधिक संपत्ति के मामले में लालू की बेटी और राज्यसभा सांसद मीसा भारती के खिलाफ ईडी (इनफोर्समेंट डायरेक्टॉरेट) ने चार्जशीट दायर की है.

पीढ़ीगत बदलाव

भारत के अधिकतर क्षेत्रीय दल पीढ़ीगत बदलाव से गुजर रहे हैं. द्रमुक को छोड़कर बाकी सभी दल 25 वर्ष या उससे कम के हैं. ये मंडल और मंदिर युग के बाद के हैं.

समाजवादी पार्टी का रूपांतरण लगभग हो चुका है, जब से अखिलेश यादव ने पिता मुलायम यादव को पद-स्थापित किया. द्रमुक में स्टालिन बेताज़ बादशाह हैं. हरियाणा के चौटालाओं में भी अगली पीढ़ी का सवाल लगभग तय है और बिहार के पासवानों में भी. यह सब कुछ तब हो रहा है, जब भारत की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस ने भी राहुल गांधी को नेतृत्व सौंप दिया है, जो इन दिनों गुजरात चुनाव के बाद अलग ही मूद्रा में दिख रहे हैं.

पार्टी के बड़ों जैसे सोनिया गांधी, मुलायम, ओमप्रकाश चौटाला और राम विलास पासवान ने कुल मिलाकर मार्गदर्शक की भूमिका अपना ली है.

हालांकि, राजद का रूपांतरण अभी शुरू हुआ है और अभी कच्चा है. लालू अपने पुत्र तेजस्वी को स्वाभाविक वारिस के तौर पर पेश कर रहे हैं. हालांकि, दूसरे दलों में जहां नयी पीढी के नेताओं ने अपनी टीम खुद बनायी है, तेजस्वी अभी भी टीम लालू के साथ काम कर रहे हैं. पार्टी के सबसे लोकप्रिय प्रचारक अब तक लालू ही हैं.

लालू बिहार में मंडल के पोस्टर-ब्वॉय थे. कर्पूरी ठाकुर के बाद सबसे लोकप्रिय पिछड़े नेता. एक मजबूत पिछड़ा, मुस्लिम औऱ दलित समर्थन ने लालू प्रसाद को लगभग दो दशकों तक बिना किसी चुनौती के राज करने लायक बनाया. हालांकि, अब ऐसा नहीं है.

अब भाजपा और नीतीश कुमार ने पिछड़ों और दलितों के वोट में कुछ हद तक सेंध लगा दी है और कोई भी पार्टी अपने दम पर अब सरकार नहीं बना सकती. इसी वक्त विपक्षी दलों को लालू जैसे करिश्माई नेता की जरूरत है. न केवल बि।हार, बल्कि उत्तर भारत के दूसरे राज्यों में भी.

हालांकि, लालू के खिलाफ तीन और मुकदमे हैं, जहां अगले कुछ महीनो में फैसला आना है, और दोषसिद्धि (कनविक्शन) संभव है. इसका मतलब है कि वह और उनकी पार्टी जल्द से जल्द जमानत करवाने की कार्रवाई में लगे होंगे, न कि 2019 के बड़े आम चुनाव की तैयारी में.

लालू अगर तेजस्वी को ज़मीन पर काम करने के संदर्भ में निर्देश देकर तैयार भी कर देते हैं,तो भी उनकी अनुपस्थिति पार्टी कार्यकर्ताओं को मायूस करेगी. लालू अपने समय के किसी भी नेता से अधिक, सही संदेश पहुंचाने का जादू जानते हैं. शनिवार को फैसला आने के साथ ही, उन्होंने काफी तेजी से अपने ‘पिछड़े’ होने का उल्लेख किया और कोर्ट से न्याय पाने की उम्मीद जतायी.

लालू तेजस्वी यादव और अपने दूसरे बच्चों के लिए मंच सजाना चाह रहे हैं, लेकिन वे अभी भी पार्टी का नेतृत्व संभालने को लेकर बेहद कमसिन हैं. साथ ही, परिवार के लगभग हरेक सदस्य के खिलाफ ईडी की जांच चल रही है. पार्टी को जल्द ही अपने आंतरिक मसलों को खत्म करना होगा, उसके बाद ही बड़ी राजनीतिक रणनीति बन सकती है.

सबसे महत्वपूर्ण है कि लालू की सबसे बड़ी राजनीतिक पूंजी बिहार के बाहर विपक्षी नेताओं तक पहुंच की है. दूसरे दलों के वरिष्ठ नेताओं से लालू के सीधे तार जुड़े हैं और वह प्रभावी तौर पर साथ में गठबंधन कर भाजपा के लिए कड़ी चुनौती खड़ी कर सकते हैं. यह कहना मुश्किल है कि लालू के दिन राजनीति में बीत गए. उनका इतिहास ही वापसी करने का रहा है. हालांकि, इस बार उनकी ऐतिहासिक प्रसिद्धि चुनौती के घेरे में है.