मैं महसूस कर सकता हूं कि अतीत में आपको क्या कुछ से गुजरना पड़ा होगा क्योंकि एक दलित लड़का कुछ करना चाहे तो उसे हमेशा मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. लोग हमारी उपलब्धियों को पचा नहीं पाते.
‘‘असली नेता वह नहीं है जो सर्वसम्मति की खोज करता है बल्कि वह है जो सर्वसम्मति को दिशा देता है.’’
– मार्टिन लूथर किंग जूनियर
बधाई हो जिग्नेश मेवाणी! आपकी जीत अनुसूचित जाति के तमाम युवाओं का हौसला बढ़ाएगा. हममें से कई के लिए जिग्नेश एक योद्धा हैं इसलिए नहीं कि उन्होंने यह चुनाव लड़ा और जीते बल्कि इसलिए कि आप ऊंची जातियों के वर्चस्व के खिलाफ निरंतर आवाज उठाते रहे हैं. वे राजनीति में दलित आंदोलन के चेहरे के रूप में उभरे हैं. आंदोलन करने का उनका जज्बा निरंतर बदलाव को अपनाने और परंपरा का विरोध करने, और बाद में ‘उना कांड’ के खिलाफ अपनी आवाज उठाने से प्रकट होता है. इसके बाद वे चुनाव अभियान में उतरे और कई लोगों के लिए राष्ट्रीय दलित राजनीति का चेहरा बन गए.
लेकिन राष्ट्रीय मीडिया में जिग्नेश पर हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकुर हावी दिखे.
मैं इसकी वजह निश्चित तौर पर नहीं जानता लेकिन मुझेे लगता है कि मीडिया ने संभवतः दो कारणों से जिग्नेश की अनदेखी की- या तो उन्हें ‘दलित/वंचित’ के रूप में लिया गया, जिसे लोग मौका नहीं देना चाहते या फिर यह कि वें इन तीनों में सबसे ज्यादा तेज, शिक्षित हैं और जानते हैं कि क्या कहना चाहिए और क्या नहीं.
जिग्नेश! मेरा मानना है कि आपकी आवाज में एक चिनगारी है, एक दर्द है.
मैं महसूस कर सकता हूं कि अतीत में आपको क्या कुछ से गुजरना पड़ा होगा क्योंकि एक दलित लड़का कुछ करना चाहे तो उसे हमेशा मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. लोग हमारी उपलब्धियो को पचा नहीं पाते. मेरे लिए भी बैचलर की डिग्री से पीएचडी तक का सफर आसान नहीं रहा. हमें हर कदम पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है.
आपके जोरदार राजनीतिक दांव ने आपको जिता दिया.
लेकिन अल्पेश ठाकुर और हार्दिक पटेल के लिए आपके समर्थन से कई सवाल उभरे हैं. इन दो नेताओं के नेतृत्व में हुई हिंसा पर आपकी चुप्पी मेरे लिए एक पहेली है. क्योंकि उना में जो कुछ हुआ उसका पटेल आंदोलन से कोई संबंध नहीं था. इसलिए, जिग्नेश ने हार्दिक पटेल का समर्थन क्यों किया, यह मेरे लिए बड़ा प्रश्न बना हुआ है. जिग्नेश में नेता बनने के सभी गुण हैं लेकिन मुझे डर है कि वे अंत में जाकर संघर्ष के मुद्दे से भटक सकते हैं. अपने साथी नेताओं- हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकुर- द्वारा ‘दूसरे दंगे’ पर आपकी चुप्पी आपकी छवि को खराब कर देगी.
उना से वडगांव तक की यात्रा के बीच कहीं-न-कहीं आपकी राजनीति और सरोकार में गिरावट आई है.
सकारात्मक बात तो यह है कि दलित समाज को आपके जैसे नेता की जरूरत है. आमतौर पर लोग अपनी शिक्षा पूरी करते हैं, नौकरी पाते हैं और खुशहाल जीवन जीने लगते हैं. आपने दूसरों की खातिर, उन लोगों की खातिर लड़ने का फैसला किया, जो खुद नहीं लड़ सकते. अपनी आवाज बुलंद करने के लिए काफी हिम्मत की जरूरत होती है.
स्वास्थ्य, शिक्षा और समानता सभी की प्राथमिकताएं हैं और मैं भी इसमें यकीन रखता हूं. तभी हम अपने अधिकारों के लिए लड़ सकते हैं. बाबासाहब ने कहा था, ‘‘हम संपत्ति या सत्ता के लिए नहीं लड़ रहे हैं, हमारी लड़ाई आजादी, मानव व्यक्तित्त्व की प्रतिष्ठा के लिए है.’’
समानता हासिल करने के लिए हमें अभी भी लंबा रास्ता तय करना है. जिग्नेश में ऐसी दृष्टि है, जो समाज में बदलाव ला सकती है. मुझे उम्मीद है कि वे अपनी सत्ता का उपयोग मानव जाति, खासकर सबसे प्रताड़ित मनुष्य की बेहतरी के लिए करेंगे.
तुषार चौहान जिनेटिक्स विषय के पीएचडी छात्र हैं और अहमदाबाद में रहते हैं.
now a days there is no real emancipator for dalit, everybody are using dalit for their own benefit. RPI of Maharashtra is divided into so many small groups, BSP is nowadays one man army show.