भारत का पहला ‘सेक्सी’ कंडोम विज्ञापन और उसकी खट्टी-मीठी यादें
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भारत का पहला ‘सेक्सी’ कंडोम विज्ञापन और उसकी खट्टी-मीठी यादें

भारत में कंडोम के पहले विज्ञापन पर विज्ञापनगुरु अलिक पदमसी की टिप्पणी और दर्शकों की प्रतिक्रिया

   
A screengrab from the KamaSutra ad featuring Pooja Bedi

A screengrab of Pooja Bedi from the KamaSutra ad

भारत में कंडोम के पहले विज्ञापन पर विज्ञापनगुरु अलिक पदमसी की टिप्पणी और दर्शकों की प्रतिक्रिया

भारत में टीवी चैनलों पर सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक कंडोम के विज्ञापन दिखाने पर रोक लगा दी गई है, क्योंकि सरकार कहती है कि इसे बच्चों को दिखाना ठीक नहीं है. इस प्रतिबंध के बहुत पहले, ‘कामसूत्र’ कंडोम का विज्ञापन भी, जिसमें मशहूर मॉडल पूजा बेदी और मार्क रॉबिन्सन ने अभिनय किया था, देश तथा उसके नेताओं को सदमा पहुंचा चुका है.

के.वी श्रीधर की पुस्तक ‘30 सेकंड्स थ्रिलर्स’ से उद्धृत इस अंश में पदमसी बता रहे हैं कि वह विज्ञापन कैसे बना था-

एक दिन गौतम सिंघानिया लिंटास के दफ्तर में आए और उन्होंने हमसे कहा कि उनके पिता विजयपत सिंघानिया ने उन्हें एक काम सौंपा है. वे चाहते हैं कि हम कंडोम का उत्पादन शुरू करें, तो उसकी मार्केटिंग के लिए हमें आपकी मदद चाहिए. इस तरह, हमने एक टीम के तौर पर काम शुरू कर दिया. हमारा पहला कदम था रिसर्च करना.

हमने 200 लोंगों के एक छोटे-से समूह से बातचीत की ताकि कंडोम के बारे में काम की जानकारियां हासिल कर सकें. आम प्रतिक्रिया यही मिली- ‘कंडोम? छिः छिः!! यह तो गंदा रबर है.’ उन दिनों केवल ‘निरोध’ नामक कंडोम मिलता था. सरकार इसका उत्पादन करती थी और यह देश में उपलब्ध सबसे गंदा प्रोडक्ट था. यह वास्तव में मोटा, गंदा-सा रबर था, जो कि एकदम गैरभरोसेमंद और असुविधाजनक था.

इस तरह की प्रतिक्रियाओं को आधार बनाकर हमने तेजी से दिमाग दौड़ाना शुरू किया. हमारे गहन मंथन का बिंदु यह था कि कंडोम को लोकप्रिय बनाने की उपयुक्त रणनीति और दृष्टि अपनाई जाए. इस चर्चा के बीच मुझे एक विचार कौंधा और मैंने अपनी टीम को बताया, ‘‘दोस्तों, मुझे एक चीज बड़ी आश्चर्यजनक लग रही है. जब आप रतिक्रिया में लगे हों तब एक ऐसी चीज आपका जोश कैसे बढ़ा सकती है जिसके बारे में आपकी धारणा इतनी बुरी हो? क्यों न हम ‘सेक्सी कंडोम’ की बात करें?’ सब हंस पड़े, क्योंकि किसी को यह नहीं यकीन हो रहा था कि कंडोम सेक्सी भी हो सकता है. इस तरह की प्रतिक्रिया ने मेरी इस धारणा को मजबूत कर दिया कि हमें सेक्सी कंडोम वाले आइडिया को ही आगे बढ़ाना चाहिए.

‘सेक्सी कंडोम!’ सुनने में कितना दिलचस्प लगता है. और, आगे क्या हुआ?

अगला काम सिंघानिया द्वारा उत्पादित किए जाने वाले कंडोम का ब्रांड नाम तय करना था. अंततः हमने ‘कामसूत्र’ नाम तय किया, क्योंकि यह केवल सेक्स का पर्याय नहीं माना जाता बल्कि यह सम्मानित सेक्स के अर्थ को भी ध्वनित करता है. कामसूत्र रति की गूढ़ कला की अोर संकेत करता है, यह अनूठा है. नाम तय हो जाने के बाद हमने कामसूत्र ग्रंथ के पन्ने पलटे ताकि यह जान सकें कि पुरुष किस-किस तरह से स्त्री में कामोत्तेजना पैदा करता है. इस तरह, कामसूत्र कंडोम एक ऐसे पुरुष का प्रतीक बन गया, जो स्त्री की फिक्र करता है और सेक्स की उसकी इच्छा को पूरी संवेदनशीलता से पूरा करता है.

हमने पत्रिकाओं में छापे गए विज्ञापन से अपना अभियान शुरू किया, जिसके लिए हमने गोवा में फोटो शूट करने का फैसला किया. छपने वाले विज्ञापन के लिए कल्पना की गई कि पूरे पन्ने पर पुरुष-स्त्री के बेहद करीबी मुद्रा का चित्र हो और बीच में कंडोम का नमूना अटका हो. अब हमें मॉडल चुनने थे. गौतम ने पूजा बेदी का नाम सुझाया.

उस समय पूजा फिल्म स्टार नहीं बनी थीं, अपनी सेक्सी छवि के कारण मशहूर थीं और चर्चा में रहती थीं. हमने उन्हें ही चुना. पुरुष मॉडल के लिए हमें मार्क रॉबिन्सन एकदम फिट लगे, हालांकि वे बहुत मशहूर नहीं थे लेकिन उनका चेहरा-मोहरा इस विज्ञापन के लिए एकदम सटीक लगता था. इसके बाद हमने विज्ञापन फिल्म बनाई जिसमें झरने के नीचे नहाने के दृश्य थे, जो यही संदेश दे रहे थे- ‘कामसूत्र कंडोम से पाएं चरम आनंद की अनुभूति’. हमने यह फिल्म दूरदर्शन को भेज दी और उन्होंने इसे प्रसारित करने से साफ मना कर दिया, ‘‘हम इस फिल्म को अपने चैनल पर कतई नहीं दिखा सकते, यह घृणित है.’’ किस्मत से उस समय उपग्रह टीवी का आगाज हुआ ही था और उन्होंने इसे दिखाने का फैसला कर लिया.

यानी दूरदर्शन ने तो नाक-भौं सिकोड़ लिये, लेकिन ऐसी प्रतिक्रिया और कहीं से मिली?

हां, विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआइ) ने मुझे तलब किया. मैं उनसे मिलने गया, उसके अध्यक्ष मेरे ऊपर बरसे, ‘‘श्रीमान पदमसी, हम आपसे एकदम नाराज हैं. हम तो यह मानते थे कि विज्ञापन की दुनिया में आप एक ऐसे व्यक्ति हैं, जो विज्ञापन में जो ठीक है उसका हमेशा समर्थन करते हैं. और आपने तो ऐसा विज्ञापन तैयार किया है, जो यह बताता है कि कंडोम सेक्स को आनंददायी बनाता है. मुझे शर्म आती है कि आपने ऐसे शब्दों का प्रयोग किया है.’’ मैंने शांति से जवाब दिया, ‘‘अध्यक्ष महोदय, अगर कंडोम सेक्स के लिए नहीं है, तो फिर किसलिए है? बैलून फुलाने के लिए? आप कंडोम सेक्स के लिए ही तो खरीदते हैं. और, युवाओं को तो आनंद ही चाहिए. विज्ञापन की टैगलाइन सिर्फ सच का ही तो बयान करती है. इस कमरे में कौन इस बात से इनकार करेगा कि हम सेक्स के लिए ही कंडोम का इस्तेमाल करते हैं? इस विज्ञापन के माध्यम से हम यही तो कह रहे हैं कि हमारे कंडोम की कुछ विशेषता है. यह सुंदर दिखता है और कई प्रकार का है- डॉटेड, अति महीन, जो सुरक्षा के साथ-साथ आनंद भी देता है. मेरा ख्याल है यह भारत में परिवार नियोजन और योन रोगों के पूरे परिदृश्य को बदलकर रख देगा.’’ मैं अपनी धारणा और सच बोल कर वहां से चल दिया. हम सब जानते हैं कि एक ब्रांड के तौर पर कामसूत्र ने और उसके विज्ञापन ने क्या करिश्मा किया.

यह के.वी. श्रीधर की ‘30 सेकंड थ्रिलर्स’ का संपादित अंश है, जिसे ब्लूमबरी इंडिया की अनुमति से प्रस्तुत किया गया.