जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर जैसों का विधानसभा में प्रवेश और कांग्रेस के पुराने दिग्गजों की अनुपस्थिति एक नयी गत्यात्मकता (डायनैमिक्स) को पैदा कर सकती है.
गुजरात के चुनाव नतीजों के बाद यहां की जनता के दोनों हाथों में लड्डू है. एक तरफ, राज्य में सत्ता उस दल के पास है, जिसका प्रधानमंत्री अपनी गुजराती पहचान पर गर्व करता है. दूसरी तरफ, उनके पास एक मज़बूत विपक्ष है, जिसमें युवा और ऊर्जावान नेता हैं जिनकी लोकप्रियता अपार है और जिन्हें सार्वजनिक आंदोलनों का खासा अनुभव है.
इसी बात की कांग्रेस में कमी थी: ऊर्जा, दिशा, उत्साह की. सड़कों-गलियों पर इसकी उपस्थिति कमज़ोर थी औऱ गुजरात विधानसभा के सत्र लंबे नहीं चलते. इसने राजनीतिक और दूसरी तरह की सक्रियता के लिए काफी स्कोप बनाया था. एक अप्रभावी और लगभग अनुपस्थित विपक्ष से पैदा शून्य को काफी हद तक पिछले कुछ वर्ष में हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर की तिकड़ी ने भरा था. राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने बुद्धिमत्तापूर्वक चुनाव के पहले इन तीनों से हाथ मिला लिया, भारत की ग्रैंड ओल्ड पार्टी का मुगालता पाले बिना, यह अच्छा फैसला था.
उनका भविष्य का गठबंधन राजनीतिक गतिविधियों से भरी मजेदार संभावना है, खासकर पटेल और मेवाणी की, जो अभी भी कांग्रेस के मंच से किनारा करते रहे हैं.
चूंकि कांग्रेस चुनाव नहीं जीती है, तो इसके पास सिवाय प्रासंगिक बने रहने के और कोई भी दायित्व नहीं है. यह राजनीतिक तौर पर मेवाणी और पटेल से गर्मजोशी भरे रिश्ते रख सकती है. नतीजों से उत्साहित होकर यह ठाकोर के जरिए 2019 की लड़ाई की तैयारी कर सकती है. बड़ी सभाएं वैसे भी बल-प्रदर्शन के लिए अच्छी साबित होती हैं.
मेवाणी तीक्ष्ण बुद्धि, आक्रामक भाषण और जमीनी स्तर के कार्यकर्ता होने का बेहतर मिश्रण हैं. स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह और शानदार गुजराती कवि ‘मरीज़’ उनके दिल के करीब हैं. कांग्रेस मेवाणी का इस्तेमाल न केवल दलितों बल्कि बाकी युवाओं को भी इकट्ठा करने में कर सकती है.
हार्दिक गुजरात में भाजपा के वोट शेयर में सेंध लगाने में अधिक कामयाब नहीं हुए हैं. यह शायद उनका राजनीतिक वजन थोड़ा घटाए, लेकिन वह लंबे समय के लिए वहां रहेंगे, क्योंकि उन्होंने मजबूत नेतृत्व-शक्ति दिखायी है. खासकर, दूसरे चरण के पाटीदार आंदोलन में.
अगर वह भाजपा के आर्थिक, कृषि-संबंधी और शैक्षिक नीतियों पर बिना अपनी जातिगत पिच को छोड़े हमलावर रहे, तो वह कई राज्यों में समर्थन पा सकते हैं. हालांकि, अब तक उनको भी समझ आ गया होगा कि केवल जाति का सहारा भाजपा को हरा नहीं सकता. एक बार फिर राज्य में भाजपा सरकार का बनना उन सभी के लिए एक साथ आने का मौका है, जो भाजपा से नाखुश हैं। वे पटेल के साथ साझा कारण ढूंढ सकते हैं.
भाजपा का दो अंकों में आना एक अलग मनोवैज्ञानिक प्रभाव छोडता है, खासकर विधानसभा में ज़मीन खोने के मामले में. ठाकोर औऱ मेवाणी जैसों का प्रवेश और कांग्रेस के पुराने दिग्गजों की विधानसभा में अनुपस्थिति एक नयी तरह की राजनीति और गति को पैदा करेगी.
मेवाणी और पटेल की मदद से कांग्रेस सत्ताधारी दल में खतरे की घंटी बजा सकती है, उनको मेहनत करने औऱ तेज़ी से काम करने को मजबूर भी कर सकती है. भाजपा भी इस आंदोलन की हवा निकालने और मेवाणी और पटेल का कद छोटा करने की कोशिश करेगी.
मोदी पर अत्यधिक निर्भरता भी भाजपा नेताओं की चिंता का कारण होना चाहिए.
कांग्रेस ने चुनाव हारा है, पर नए और बहुत जरूरी, भरोसेमंद विपक्ष का साथ पाया है, जो ज़मीन पर मौजूद हैं, वह भी ठीक भाजपा के गढ़ में. राष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसी ही रणनीति अपनाकर कांग्रेस खुद को पुनर्भाषित कर सकती है.
उर्विश कोठारी अहमदाबाद स्थित वरिष्ठ स्तंभकार और लेखक हैं.