फेक न्यूज़ के इस युग में परेश मेश्ता की मौत ने कर्नाटक, जहॉं अगले साल चुनाव होने हैं, की उबलती साम्प्रदायिक राजनीति में किया घी का काम.
पिछले हफ्ते जब देश का मूड गुजरात चुनाव में लगा हुआ था, तभी कर्नाटक में एक तूफान उबल रहा था. परेश मेश्ता की संदेहास्पद परिस्थितियों में मौत को फेक न्यूज़ से सजाकर ह्वाट्सएप पर फैलाया गया ताकि जल्द ही चुनाव होनेवाले कर्नाटक के तटीय इलाकों में सांप्रदायिक आग भड़क सके.
मेश्ता के मौत की खबर कर्नाटक के खबरिया वेबसाइट्स पर आयी, जिसे दक्षिणपंथी संगठन चलाते हैं. कहानियां बनीं कि लोगों ने उसके चेहरे पर उबलता तेल डाला, उसके गुप्तांगों को कुचला, फांसी लगा दी और आखिरकार उसे झील में फेंक दिया. प्रमुख भाजपा नेताओं ने भी ट्वीट किए. हालांकि, यंत्रणा, फांसी, जलने या गुप्तांगों को नुकसान पहुंचने वाला कोई भी तथ्य फॉरेंसिक रिपोर्ट से मेल नहीं खाता है.
हालांकि, फेक न्यूज़- कई मुख्यधारा के मीडिया संगठन भी इसमें शामिल हैं- के इस युग में परेश मेश्ता की मौत उत्तर कन्नड़ जिले में जंगल की आग की तरह फैल गयी. विपक्षी भाजपा के मंत्री और सांसदों ने आक्रामक प्रदर्शन का आह्वान किया, जो सांप्रदायिक दंगों में बदल गया. उद्देश्य सीधे तौर पर राजनीतिक थे.
उत्तर कन्नड़ के भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े के पास पूरा मौका था कि वह पुलिस महानिदेशक या दक्षिण इकाई के आइजी से कभी भी बात कर सच्चाई का पता लगा लें, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. हेगड़े जो हाल ही में अपने बयान, – जब तक दुनिया में इस्लाम है, तब तक आतंकवाद रहेगा- से विवाद में आए थे, ने उल्टा बयान दिया कि वह तब तक चैन नहीं लेंगे, जब तक मेश्ता को न्याय नहीं मिलता. वह फेक न्यूज की लीड को सबूत के तौर पर पेश कर रहे थे.
जब तक सच बाहर आता, नुकसान हो चुका था.
भीड़ ने पश्चिमी इलाके के आइजी पुलिस हेमंत निंबालकर की आधिकारिक गाड़ी जला दी. पुलिस को काफी ज़ोर लगा कर भीड़ को नियंत्रित करना पड़ा, जो पत्थर बरसा रही थी, दुकानों और प्रार्थना घरों को निशाना बना रही थी. बाद में, अनंत कुमार हेगड़े और भाजपा विधायक विश्वेश्वर हेगड़े को बंदी बनाया गया और जमानत पर छोड़ा गया.
उसी समय, सैकड़ों हिंदू कार्यकर्ताओं को बेल्लारी और धारवाड़ में पकड़ा और रखा गया. हालांकि, यहीं सबसे बड़ा पेंच है. जो भी सींखचों के पीछे हैं, वे उच्च जाति के ‘हेगड़े’ नहीं हैं, बल्कि नायक, देवड़िगा, मोगावीरी जैसे अन्य पिछड़ा वर्ग और दलित वर्ग से हैं. जो अभियुक्त हैं, वे हरिजन, खारवी और देवड़िगा हैं, भले ही दंगों का आह्वान हव्यक ब्राह्मण ने दिया था,जो हमारी सामाजिक व्यवस्था में ऊंची जाति का माना जाता है.
मेश्ता की मौत के बाद एक दूसरी फेक न्यूज ने पिछले हफ्ते उत्तर कन्नड़ को हिला कर रख दिया.
भाजपा सांसद करंदलाजे ने ट्वीट किया, ‘जिहादियों ने होनावर के पास पढ़ने वाली 9वीं वर्ग की छात्रा से बलात्कार कर मारने की कोशिश की. सरकार इस बारे में चुप क्यों हैं? उनको गिरफ्तार करो, जिसने इस बच्ची के साथ अपकर्म किया. आप कहां हैं, मुख्यमंत्री सिद्धरमैया?’
पुलिस ने जांच शुरू की. जिस लड़की की बात हो रही है, वह होनावर तालुके की थी. वह हरेक दिन अपने स्कूल जंगल से होकर जाती थी. हरेक दिन इस रास्ते में, उसी की जाति का एक युवक उसको छेड़ता था. अपने अभिभावकों को बताने में नाकाम लड़की परेशान रहती थी, और उसकी परीक्षा अच्छी नहीं हुई. परीक्षा में फेल होने के डर से उसने अपनी कलाई काट कर जान देने की कोशिश की. बाद में उसने अपना इरादा बदल दिया और अपनी दोस्त से कलाई की मरहम पट्टी करायी.
केवल उसकी दोस्त जानती थी कि स्कूल के रास्ते में कोई उसको छेड़ता है. हालांकि, आरोप यह लगे कि एक दाढ़ीवाला मुस्लिम उसको परेशान कर रहा था. इसी बीच पुलिस ने मामले की जांच की और एक विस्तृत प्रेस नोट जारी कर बताया कि लड़की ने ही खुद को चोट पहुंचायी है.
पुलिस नोट के बावजूद भाजपा और दूसरे हिंदू-समूह हालांकि यह लोगों को समझाने में सफल हो गए कि इलाके में शिकारी मुस्लिम हिंदू लड़कियों का बलात्कार कर रहे हैं.
हालांकि, ये सांप्रदायिक घटनाएं आनेवाले विधानसभा चुनाव मात्र के लिए नहीं है. इस तरह के दंगों की चरम परिणति व्यवस्थागत तौर पर जातिगत और धार्मिक संप्रदायों में आर्थिक और सामाजिक बराबरी लाने में बाधक बनने की होती है.
सांप्रदायिक दंगों में दक्षिण कन्नड़ जिले के अधिकांश अभियुक्त बिलावा समुदाय (एक निम्न जाति) के हैं. यही प्रारूप और रणनीति भी उत्तर कन्नड़ में अब अपनायी जा रही है.
मोगावीरा और मुस्लिम मेहनतकश हैं जो मछली मारने के व्यवसाय में हैं. हालांकि, तटीय कर्नाटक के हालिया सांप्रदायिक दंगों में, मोगावीरा हिंदुत्व के पैदल सिपाही बन गए हैं. इसीलिए, मुस्लिम समुदाय अब मोगावीरा बाहुल्य बंदरगाह पर जाने में डरता है, जिससे उसे भारी नुकसान है.
हममें से कई को डर है कि यह शायद यहीं न रुके. तटीय कर्नाटक सांप्रदायिक राजनीति का केंद्र बिंदु है. यह शायद उत्तर कन्नड़ ज़िले से भी आगे निकल जाए.
नवीन सूरिंजे पत्रकार हैं, जिन्होंने तटीय कर्नाटक में मानवाधिकार, जेंडर और बाल अधिकार कैंपेन पर काम किया है. वह बीटीवी (कन्नड़ न्यूज चैनल) के राजनीतिक ब्यूरो के प्रमुख हैं.