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Tuesday, November 5, 2024
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मामला कुछ भी हो, रसूख वाले बच निकलते हैं : प्रशांत भूषण

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मैं नहीं जानता कि सीबीआइ अदालत ने किस आधार पर कहा कि इस मामले में कोई सबूत नहीं दिया गया है. अपने फैसले के कम-से-कम 40 पन्नों में अदालत ने सबूतों को पुनः प्रस्तुत किया है.

टू-जी घोटाला एक ऐसा मामला था जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने विस्तार से सुनवाई के बाद न केवल सभी लाइसेंस रद्द कर दिए बल्कि अदालत की निगरानी में सीबीआइ जांच का भी आदेश दिया था. यह अयोग्य कंपनियों समेत कई कंपनियों के लाइसेंस आवंटन की ‘पहले आओ पहले पाओ’ प्रक्रिया की प्रथमदृष्टया खोज पर आधारित फैसला था.

प्रथमदृष्टया यह गंभीर भ्रष्टाचार का मामला था.

सीबीआइ ने सुनवाई अदालत के सामने काफी सबूत रखे. इनमें लाइसेंस देने का पूर्णतः भ्रष्ट तरीका ही शामिल नही था बल्कि यह तथ्य भी शामिल था कि स्वान टेलीकॉम और लूप टेलीकॉम कंपनियां असल मौजूदा लाइसेंसधारकों- रिलायंस तथा एस्सार- की बेनामी कंपनियां थीं. सीबीआइ ने ए. राजा और कनिमोई और उनकी कंपनियों को अवैध अनुग्रह दिए जाने के पर्याप्त सबूत भी पेश किए थे.

सदमे पहुंचाने वाली बात यह है कि इन तमाम सबूतों के बावजूद सुनवाई अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया.

मेरे विचार से, यह पूरी तरह गलत फैसला है, जिसके खिलाफ सीबीआइ तथा प्रवर्तन निदेशालय को तुरंत अपील दायर करनी चाहिए. उम्मीद है कि ऊंची अदालत इस फैसले को खारिज कर देगी.

इस तरह के फैसले से देश को यह दुर्भाग्यपूर्ण संदेश जाता है कि हमारी न्याय व्यवस्था ताकतवर तथा रसूख वाले आरोपियों को दोषी नहीं साबित कर सकती.

मैं नहीं जानता कि सीबीआइ अदालत ने किस आधार पर कहा कि इस मामले में कोई सबूत नहीं दिया गया है. अपने फैसले के कम-से-कम 40 पन्नों में अदालत ने सबूतों को पुनः प्रस्तुत किया है.

यह संयोग भी गौर करने लायक है कि जिस कंपनी को बरी किया गया है वह वर्तमान शासकों की चहेती बन गई है.

हमारी न्याय व्यवस्था का इतिहास प्रायः ऐसे मामले से भरा है जिनमें प्रभावशाली आरोपी, खासकर बड़े कॉरपोरेट और ताकतवर नेता सुनवाई अदालत से ही या तो बरी होकर निकल जाते हैं या अपील की प्रक्रिया में से, जो आमतौर पर दशकों तक चलती रहती है.

प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं जिन्होंने स्पेक्ट्रम लाइसेंस को रद्द किए जाने की वकालत की थी.

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1 COMMENT

  1. जब भी VIP संबंधित मामला आता है- पुलिस, CBI, ज्यूडिशरी, सब अँधे बहरे हो जाते हैं | सबूत नाकाफ़ी ठहरा दिये जाते हैं |लोकतंत्र का यह वर्जन भारतीय मॉडल कहलाता है- भले ही देश कंगाल हो जाये,पर राजनैतिक रसूख वाले एक भी अपराधी को सजा न होने पाये

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