बांग्लादेश में पनपते अतिवाद से दुनियाभर में बांग्लादेशी शर्मिंदा
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बांग्लादेश में पनपते अतिवाद से दुनियाभर में बांग्लादेशी शर्मिंदा

जिस बांग्लादेश ने पाकिस्तान का विरोध इसलिए किया कि वह एक सेक्युलर देश होना चाहता था, वही अब धार्मिक उन्मादियों और जिहादियों को पैदा कर रहा है.

A man looks out a window near an address associated with suspected terrorist Akayed Ullah

A man looks out a window near an address associated with suspected terrorist Akayed Ullah in New York City. Photo by Stephanie Keith/Getty Images

जिस बांग्लादेश ने पाकिस्तान का विरोध इसलिए किया कि वह एक सेक्युलर देश होना चाहता था, वही अब धार्मिक उन्मादियों और जिहादियों को पैदा कर रहा है.

बांग्लादेश के दो युवा नइमुर ज़कारिया रहमान और अकाएद-उल्लाह, दो बड़े धमाकों की योजना बना रहे थे.नइमुर, 20 वर्ष, ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसा मे को मारने की योजना बना रहा था, वहीं अकाएद निर्दोष न्यूयॉर्क वासियों को खत्म करना चाह रहा था.

शुक्र है, वे सफल नहीं हुए.

नइमुर के पास एक आत्मघाती हमलों वाली पोशाक (वेस्ट), एक चाकू और एक पेपर स्प्रे था, जिससे वह मे को मारना चाहता था. उसने 10 डाउनिंग स्ट्रीट के दरवाजे पर एक बम रखने की भी सोची थी. उसकी योजना पूरी होने से पहले ही वह पकड़ा गया। उसके साथ उसका दोस्त इमरान भी था, जो आइएसआइएस में शामिल होने लीबिया जा रहा था.

उल्लाह ने अपने पेट के ऊपर पाइप बम बांध लिया था और वह टाइम्स स्क्वायर के पास एक सबवे-स्टेशन के पास खड़ा था. उसने बम को सुबह की भीड़ में सक्रिय करना चाहा, ताकि उसके साथ सैकड़ों यात्रियों की भी जान जाए। हालांकि, वह सफलतापूर्वक बम को नहीं चला सका.

उल्लाह अपने रिश्तेदारों के कहने पर बांग्लादेश से एक वैध आप्रवासी की तरह आया था, जैसे कि कई बांग्लादेशी महान अमेरिकी स्वप्न से खिंचे चले आते है. वह टैक्सी चलाने के साथ ही बिजली-मिस्त्री के तौर पर भी काम करता था. वह इंटरनेट पर आइएसआइएस के वीडियो भी देखता था. उसने आइएसआइएस की यह घोषणा भी सुनी जिसमें सभी गैर-मुस्लिमों और काफिरों को मार देने की बात कही गयी है. उसने नेट से बम बनाना सीखा और फिर इसे टाइम्स स्कवायर पर ले गया. उसने सोचा कि एक बार वह लोगों को मार दे, फिर तो उसे जन्नत ही नसीब होगी. उसे खाना, शराब और साथ में सेक्स के लिए शानदार हूरें मिलेंगी.

उल्लाह ने बांग्लादेश में जन्नत का यह वर्णन सुना था. कई धार्मिक अतिवादी बांग्लादेश में गांवों-शहरों मे ये संदेश फैलाने के लिए मुक्त हैं. वे जन्नत की राह, गैर-मुस्लिमों के बारे में घृणा, हिंदू मंदिरों-बौद्ध मठों को तोड़ने, अमेरिका-इजरायल के विरोध आदि की बातें करते हैं, साथ ही आतंकवाद पर टिप्स तो देते ही हैं. वे देश की बंगाली संस्कृति को इस्लामी रवायत से बदलना चाहते हैं. ये अतिवादी असंख्य अकाएद उल्लाह बनाने और बांग्लादेशी युवाओं को बर्बाद करने के लिए काफी हैं.

बांग्लादेश का हरेक संस्थान, राज्य हो या दूसरा, नागरिकों को धार्मिक बनने का दबाव डाल रहा है. स्कूल, कॉलेज, मदरसा आदि युवाओं का ब्रेनवॉश कर उनको अत्यधिक धार्मिक बना रहे हैं. धार्मिक उन्मादियों के साथ समस्या यह है कि वे दोस्तों, परिवार और हरेक को खुद की तरह ही बनाना चाहते हैं. वे धार्मिक आतंकवाद को आतंकवाद ही नहीं मानते. न ही, वे विभिन्न विचारों को व्यक्त करने की आज़ादी को मानते हैं. वे प्रजातंत्र को धर्मतंत्र से बदल देना चाहते हैं. ज़ाहिर है, इसीलिए अत्यधिक धार्मिक समाजों मे अकाएद-उल्लाह ही पैदा हो सकता है, आइंस्टाइन नहीं.

यह अकाएद जैसे लोगों की वजह से ही है कि अमेरिका में ‘चेन माइग्रेशन’ (शृंखलाबद्ध आप्रवास) पर रोक लगने जा रही है. चेन-माइग्रेशन में कोई आप्रवासी अमेरिका में बसने के बाद अपने परिवार के अन्य सदस्यों को एक के बाद एक अमेरिका बुला लेता है, बसने में उनकी मदद करता है. यदि यह बंद हो गया तो, न केवल बांग्लादेशी प्रभावित होंगे, बल्कि दूसरे देशों के आप्रवासी भी प्रभावित होंगे, जिनको अपने परिवार को पीछे छोड़कर अकेले रहना होगा. अकाएद ने क्या किया? सैकड़ों बांग्लादेशी कामगार, जो ईमानदारी से काम कर रहे थे, अब डर में जी रहे हैं, अपनी जन्मभूमि का नाम बताने में शर्म कर रहे हैं.

बांग्लादेश का नाम चमकाने के लिए अकाएद और नइमुर ने क्या किया? बांग्लादेश को एक उदारवादी मुस्लिम देश कहा जाता था औऱ अब इसे धार्मिक अतिवादी और उग्रवादी देश के तौर पर जाना जाता है. दुखद है कि उन्मादियों के लिए उनका देश या उनके लोग मायने नहीं रखते. उनके लिए बस धर्म मायने रखता है. उनके लिए वही लोग मायने रखते हैं, जो उनका धार्मिक तरीका मानते हैं. संस्कृति और परंपरा के मायने नहीं रखते.

इसीलिए, अगर गाजा में मुस्लिमों पर आक्रमण होता है, अकाएद को गुस्सा आता है. हालांकि, यह उसके लिए मायने नहीं रखता कि उसके अपने बांग्लादेश में हिंदू मारे जा रहे हैं. वह न्यूयॉर्क में रहता था और न्यूयॉर्क के ही गैर-मुस्लिमों को निशाना बनाना चाहता है. यदि वह बांग्लादेश में रहता तो हिंदू मंदिरों को नुकसान पहुंचाने और रोहिंग्या को शरण देने वालों में शामिल होता, क्योंकि रोहिंग्या उसके सहधर्मी हैं.

पश्चिमी देशों में अगर कोई आतंकी हमला होता है, तो ये उन्मादी जश्न मनाते हैं, हालांकि छुपकर, क्योंकि अगर पुलिस ने इन्हें पकड़ लिया, तो वे इन देशों में रह नहीं पाएंगे.

हालांकि, यह केवल जन्नत जाने की ही इच्छा नहीं है,जो इनको आतंकी बनाती है. इसके पीछे गुस्सा भी है. जब इजरायल या अमेरिका मुस्लिम देशों पर बम गिराते हैं, मुस्लिमों को मारते हैं, यह उनको गुस्सा दिलाता है. चूंकि वे गुस्से में हैं, तो सोचते हैं कि बदला लेने के लिए उन्हें मर जाना चाहिए. आतंकियों का गुस्सा अजीब है. अगर एक मुस्लिम किसी मुस्लिम को मारता है, या कोई धनी मुस्लिम किसी गरीब मुस्लिम का शोषण करता है या फिर कोई मुस्लिम किसी मस्जिद पर बम फोड़ दे, जहां लोग नमाज़ पढ़ रहे हैं, या फिर कोई मौलवी किसी मदरसे में लड़कियों का बलात्कार करे या फिर कोई मुस्लिम कुरान को जला दे या उसका अपमान करे, तो इन आतंकियों को गुस्सा नहीं आता.

क्या नइमुर औऱ अकाएद के समर्थक बांग्लादेश में नहीं हैं? निस्संदेह, हैं. कई सारे. इसीलिए, जब लोग धार्मिक विचारों में सुधार करना चाहते हैं, आतंकी उनकी क्रूरता पूर्वक हत्या कर देते हैं. अब, वे यही काम बांगलादेश के बाहर कर रहे हैं. न केवल कुछ बांगलादेशी लड़के-लड़कियों ने आइएसआइएस के साथ काम करना शुरू किया है, बल्कि कई तो इस आतंकी संगठन का भी समर्थन कर रहे हैं. आइएसआइएस अगर खत्म भी हो गया है, तो उसके आदर्श नहीं.

जिस बांग्लादेश ने पाकिस्तान का विरोध इसलिए किया कि वह एक सेकुलर देश होना चाहता था, अब धार्मिक अतिवादियों और जिहादियों को जन्म दे रहा है. दुनिया भर में प्रगतिशील आंदोलन होने चाहिए और इसकी शुरुआत बांग्लादेश से होने दीजिए. आतंक को रोकना केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि हरेक नागरिक की है। किसी ज़हरीले पेड़ की शाखें काट देने मात्र से ज़हर रुक नहीं जाता. आपको उसे जड़ से उखाड़ना होगा.

तसलीमा नसरीन मशूहर लेखिका और टिप्पणीकार हैं.