इटली से तो बच निकले पर भारत में कब तक खैर मनाएंगे अगस्ता वेस्टलैंड सौदे के बिचौलिये
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इटली से तो बच निकले पर भारत में कब तक खैर मनाएंगे अगस्ता वेस्टलैंड सौदे के बिचौलिये

अगस्ता वेस्टलैंड सौदे के घपले में सबूत तो बिचौलियों की ओर संकेत करते हैं मगर सुरागों को जोड़कर ठोस मामला न बना पाना भारतीय जांचकर्ताओं की कमजोरी रही है. 

Giuseppe Orsi, former head of Finmeccanica

Giuseppe Orsi, former head of Finmeccanica | Illustration by Siddhant Gupta

अगस्ता वेस्टलैंड सौदे के घपले में सबूत तो बिचौलियों की ओर संकेत करते हैं मगर सुरागों को जोड़कर ठोस मामला न बना पाना भारतीय जांचकर्ताओं की कमजोरी रही है. 

इटली की एक अदालत ने अगस्ता वेस्टलैंड कंपनी के दो पूर्व आला अधिकारियों को इस आरोप से बरी कर दिया है कि उन्होंने अपनी कंपनी के वीवीआइपी हेलिकॉप्टर बेचने के लिए भारतीय शासनतंत्र को भ्रष्ट किया. इटली के लिए अब यह मामला खत्म हो गया है, वहां अब कोई अपील नहीं की जा सकती. जहां तक इस मामले की बात है, जांचकर्ता यह साबित नहीं कर पाए कि कंपनी से जो पैसे निकले वे भारत के सरकारी अधिकारियों की जेबों में ही गए.

लेकिन भारत के लिए अभी यह मामला निबटा नहीं है, भले ही वह इटली से शुरू हुई इसकी जांच प्रक्रिया से बाद में हिचकते हुए जुड़ा था. जांचकर्ताओं के लिए अभी लंबी और कठिन लड़ाई बाकी है. भारतीय कानूनी प्रक्रिया से गुजर रहे इस मामले को इतालवी अदालत का फैसला शायद ही प्रभावित करेगा. यह ऐसा मामला है जिसमें घपले का पैसा चार देशों से गुजरा; संदिग्ध माने गए प्रमुख लोग दुबई, इटली और स्विट्जरलैंड में फैले हुए हैं. खासतौर से इस तरह के मामलों में भारतीय जांचकर्ता सुरागों को जोड़ने में हमेशा कमजोर साबित होते रहे हैं. लेकिन केंद्र में आई मोदी सरकार की बदौलत सीबीआइ ने जब चुस्ती दिखाई है तब संकेत मिल रहे हैं कि भारत के पास मामला ज्यादा मजबूत बन रहा है.
विशेष कानूनी प्रक्रिया

अब तक का ब्यौरा इस प्रकार है- इटली के जांचकर्ताओं ने व्यापक किस्म के अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार के लिए अगस्ता वेस्टलैंड कंपनी के खिलाफ जांच 2011 के उत्तरार्द्ध में शुरू की. इसके सदिग्ध सौदों में एक था भारत द्वारा 55.6 करोड़ यूरो मूल्य के वीवीआइपी हेलिकॉप्टरों के नए बेड़े की खरीद का. 2012 में जो विस्तृत जांच हुई तो संदिग्ध लोगों के दफ्तरं और लग्जरी कारों तक में फोन तथा वायर टैप किए गए, कई छापं में हजारों दस्तावेज और वित्तीय रेकॉर्ड जब्त किए गए.

माना यह जा रहा था कि कंपनी ने बिचौलियों के दो समूहों को 5.6 करोड़ यूरो इस मकसद से दिए कि वे भारतीय अधिकारियों को इस तरह प्रभावित करें कि सौदे के लिए जो प्रतियोगिता है उसमें अगस्ता वेस्टलैंड कंपनी का पलड़ा भारी हो जाए. इस घपले की जांच 2013 में पूरी हो गई और मामला सुनवाई अदालत में पहुंच गया. इटली की इस अदालत ने भ्रष्टाचार के आरोपों को खारिज कर दिया. लेकिन इससे ऊंची अदालत ने अधिकारियों को दोषी घोषित कर दिया. अगस्ता वेस्टलैंड कंपनी ने किसी तरह खुद को इस मामले से यह कहते हुए अलग कर लिया कि अधिकारियों के अपराध के लिए उसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. कंपनी ने जुर्माना अदा कर दिया और वादा किया कि बेहतर निगरानी के लिए वह संस्थागत सुधारों को लागू करेगी. इसका परिणाम यह हुआ कि इसकी मूल कंपनी फिनमेक्कानिका का नाम बदलकर लिआनार्डो हो गया और इसका पुनर्गठन भी किया गया.

करार रद्द

मामले की भारतीय जांच 2013 में शुरू हुई- यह इटली के मामले की जांच प्रक्रिया से बिलकुल स्वतंत्र थी. हालांकि शुरू में अधिकतर सबूत इतालवी जांचकर्ताओं से हासिल किए गए, लेकिन प्रवर्तन निदेशालय ने गहरे वित्तीय महाजाल में जाकर पता लगाया कि ट्युनीसिया से मॉरिशस और सिंगापुर के घुमावदार रास्ते से किस तरह पैसा इटली से भारत लाया गया था.

रक्षा मंत्रालय ने भी 2013 में आंतरिक जांच करवाई थी और वह इस फैसले पर पहुंचा था कि यह साबित करने के पर्याप्त सबूत हैं कि इतालवी कंपनी ने भारत में बिचौलियों और दलालों का इस्तेमाल करके नियमों का उल्लंघन किया. बोफोर्स मामले के- जिसमें स्वीडिश कंपनी के कोई दंड नहीं दिया गया था- उलट इस मामले में 55.6 करोड़ यूरो के करार को रद्द कर दिया गया और भारत ने इतालवी कंपनी को जितने पैसे भुगतान किए थे उन्हें वापस हासिल कर लिया. चार एडब्लू-101 हेलिकॉप्टर, जो सौदे के तहत आए थे उन्हें पैक करके पालम विहार हवाई छावनी में खड़ा कर दिया गया है जबकि इतालवी कंपनी के साथ बातचीत चल रही है.

भारतीय व्यवस्था के लिए यह सौदा सरकारी तौर पर खटाई में डाल दिया गया है- 1 जनवरी 2014 को करार इस आधार पर रद्द कर दिया गया कि कंपनी ने मानदंडों का उल्लंघन किया. यूपीए की जिस मनमोहन सिंह सरकार ने करार किया था उसी ने सीधे-सीधे अपनी गलती मानते हुए उसे रद्द कर दिया.

सुरागों के सूत्र

अब भारतीय संदर्भ में करने को यही बाकी रह गया है कि सौदे के खटाई में पड़ने के लिए किसी को दोषी और जिम्मेदार ठहराया जाए. यहीं पर सीबीआइ और प्रवर्तन निदेशालय की भूमिका उभरकर सामने आती है. संकेत हैं कि जांचकर्ताओं ने पता लगा लिया है कि भारत में कुछ पैसा कई कंपनियों की एक कड़ी के जरिए आया और इसका बड़ा हिस्सा सिंगापुर के रास्ते यहां आया.

पुरानी भारतीय चाल के तहत नकदी का उपयोग अनौपचारिक ट्रेडिंग सिस्टम के जरिए किया जाता रहा है. इस चाल के कारण पैसे की आवाजाही का पता लगाना मुश्किल होता है. लेकिन पता लगा है कि छोटी मगर पर्याप्त रकम औपचारिक वित्त व्यवस्था के जरिए भी भारत आई है.

अब जो मामला हाथ में है उसके ये तत्व हैं- इतालवी कंपनी ने भारत में सौदों के लिए कंसल्टेंट नियुक्त किए, इतालवी कंपनी की ओर से पैसा निकला मगर किस काम के लिए, यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं किया जा सकता, और भारत में करार को तब रद्द किया गया जब सरकार ने फैसला किया कि एक खास कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए संबंधित हेलिकॉप्टर के परीक्षण किए गए और उसकी विशेषताएं तय की गईं.

अब सवाल यह है कि क्या भारतीय जांचकर्ता सुरागों को जोड़ कर मजबूत मामला बना सकेंगे और मुकदमा आगे बढ़ा सकेंगे? हथियार खरीद के सौदें की जांच का सीबीआइ का जितना खराब रेकॉर्ड रहा है उसे देखते हुए यही लगता है कि अगस्ता वेस्टलैंड मामला शायद उसके लिए सबसे कठिन है.