क्या लालू की सजा पर फैसले को प्रभावित करने की कोशिश हुई भी थी?
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क्या लालू की सजा पर फैसले को प्रभावित करने की कोशिश हुई भी थी?

जज शिवपाल सिंह ने इन खबरों का खंडन किया है कि उनके गृह जिले के डीएम मन्ना अख्तर ने उन्हें लालू यादव को नरमी से सजा सुनाने के लिए दबाव डालने की कोशिश की.

   
A collage of the headlines of reports about the IAS official allegedly calling the judge

A collage of the headlines of reports about the IAS officer allegedly calling the judge

जज शिवपाल सिंह ने इन खबरों का खंडन किया है कि उनके गृह जिले के डीएम मन्ना अख्तर ने उन्हें लालू यादव को नरमी से सजा सुनाने के लिए दबाव डालने की कोशिश की.

जालौन, उत्तर प्रदेश: प्रदेश के एक मुस्लिम जिला मजिस्ट्रेट ने रांची में सीबीआइ अदालत के जज को फोन लगाया और उनसे कहा कि राष्ट्रीय जनता दल के सर्वेसर्वा लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले के मामलों में नरम सजा सुनाएं. बदले में उन्होंने वादा किया कि जज के परिवार के भूमि विवाद को लेकर जो पुराना मामला चल रहा है उसे सुलझाने में वे उनकी मदद करेंगे क्योंकि वह उनके अधिकार क्षेत्र में है.

है न हैरत की बात? लेकिन क्षेत्रीय मीडिया के कई लोगों को ऐसा नहीं लगा और पिछले हफ्ते यह खबर पूरे शहर में चर्चा का विषय बन गई. खबर दी गई कि जालौन के डीएम मन्नान अख्तर ने लालू के लिए पैरवी की. स्थिति यहां तक पहुंची कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खबरों के आधार पर ही मामलों की जांच शुरू करवा दी जबकि 2011 बैच के आइएएस अधिकारी अख्तर ने इस खबर का जोरदार खंडन किया.

अब विवाद के केंद्र में स्थित जज शिवपाल सिंह ने मामले को शांत करने की पहल की है. उन्होंने ‘दिप्रिंट’ से खास बातचीत में कहा कि अख्तर ने उन्हें चारा घोटाले के दूसरे मुकदमे में लालू को लेकर उनके फैसले को प्रभावित करने के लिए फोन नहीं किया था, “यह एकदम गलत बात है कि जालौन के डीएम ने मुझे फोन किया और लालू के लिए मुझसे पैरवी की. डीएम ने मुझे कभी फोन नहीं किया. पता नहीं मीडिया को यह बात कहां से पता लगी, यह पूरी तरह से बेबुनियाद है”.

याद रहे कि शिवपाल सिंह ने लालू को साढ़ तीन साल की जेल की सजा सुनाई.

स्कूप

23 दिसंबर 2017 को लालू और अन्य आरोपियों को दोषी ठहराते हुए जज शिवपाल सिंह ने टिप्पणी की थी कि कई लोगों ने उन्हें फोन करके पैरवी की कि वे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री को राहत दे दें. हालाकि जज महोदय ने फोन करने वालों की पहचान नहीं जाहिर की लेकिन उन लोगों के बारे में अटकले शुरू हो गईं.लालू को सजा सुनाए जाने के चार दिन बाद, 10 जनवरी को एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक ने एक ‘स्कूप’ छाप दिया, जो अज्ञात सूत्रों के हवाले से था. इसमें कहा गया कि अख्तर ने जज को प्रभावित करने की कोशिश की और बदले में वादा किया कि जालौन जिले में उनके पुश्तैनी गांव शाहपुर खुर्द में जमीन हड़पने का जो पुराना मुकदमा चल रहा है उसे निबटाने में वे जज की मदद करेंगे. यह खबर पर पूरे प्रदेश में अखबारों और टीवी चैनलों पर चर्चा का प्रमुख मुद्दा बन गई. योगी सरकार ने इन खबरों को ध्यान में लेते हुए झांसी के डिवीजन कमिश्नर अमित गुप्ता को इस मामले की जांच करने का आदेश दे दिया.
अख्तर जोर देकर कहते रहे कि वे असम के हैं और उत्तर प्रदेश काडर के हिस्से हैं तथा उनका लालू से कोई ताल्लुक नहीं है. लेकिन उनकी बात पर किसी ने कान नहीं दिया.

जज की जमीन का विवाद

दरअसल, इस मामले के पीछे जज शिवपाल सिंह के परिवार और उनके ग्राम प्रधान वीरेंद्रपाल सिंह के बीच 1990 के दशक का एक भूमि विवाद है. इस जमीन को खेतों तक जाने वाले कच्चे रास्ते में तब्दील कर दिया गया था. शिवपाल सिंह पांच भाइयों में सबसे छोटे हैं. उनसे ठीक बड़े भाई, जिनका नाम भी वीरेंद्रपाल सिंह है, को छोड़ बाकी चारो भाई गांव से बाहर रहते हैं. जज के भाइ का आरोप है कि यह कच्ची सड़क जानबूझकर उनकी जमीन पर बनाई गई है जबकि बगल में सरकारी जमीन पर बनी सड़क पर कुछ गांववालों ने प्रधान के कहने पर अवैध कब्जा कर लिया है.

जालौन के सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट ने 2015 में इस जबरन कब्जे को खत्म करने की कोशिश की थी और निर्देश दिया था कि जमीन की मापी की जाए और इसकी हदबंदी करने के लिए चारो तरफ पत्थर के खंभे खड़े किए जाएं. बाद में गांववालों ने इन खंभों को गिरा दिया और जज की जमीन पर सड़क चालू रही. पिछले साल जब वे गांव गए थे तब अख्तर से मिले थे. अख्तर ने इसे एक महीने पहले ही जालौन के डीएम का पद संभाला था. जज शिवपाल सिंह कहते हैं, “डीएम ने शाम तक मुझे इंतजार में बिठाए रखा, फिर कहलवा दिया कि मैं अगले दिन उनके दफ्तर आऊं. जब मैं अगले दिन गया तो उन्होंने मुझसे कहा कि मैं भले ही झारखंड में जज हूंगा लेकिन मुझे उत्तर प्रदेश के कानून पढ़ने चाहिए”.

जज के इस बयान के बारे में ‘दिप्रिंट’ ने अख्तर से बात की तो उन्होंने कहा, “मैं उस दिन व्यस्त रहा हूंगा इसलिए उन्हें अगले दिन आने को कहा होगा. यह दीवाली के आसपास की बात है और मुझे उस इलाके में प्रशासनिक काम देखने थे.” अगले दिन जज से हुई बातचीत को याद करते हुए उन्होंने कहा, “उन्होंने अपनी जमीन पर कब्जा करके सड़क बनाए जाने की बात बताई थी. मैंने उनसे कहा कि मैं उस सरकारी जमीन की तो पैमाइश करा सकता हूं जिस पर कब्जा किया गया है लेकिन उनकी पारिवारिक जमीन की नहीं. अगर वे अपनी जमीन की पैमाइश कराना चाहते हैं, तो उन्हें प्रदेश के राजस्व कानून की धारा 24 के तहत किसी अदालत में आवेदन देना होगा. इसी धारा के तहत सरकार किसी व्यक्ति की निजी जमीन को नाप सकती है. इसके बाद वे फिर मेरे पास नहीं आए. और मुझे भी याद नहीं है कि मैंने उन्हें फोन किया हो.”

इस बीच, जालौन प्रशासन ने पिछले सप्ताह सरकारी जमीन पर से कब्जा हटा लिया और वहां नई सड़क बना दी. इस तरह जज के परिवार को अपनी उस जमीन का कुछ हिस्सा वापस मिल गया जिस पर सड़क बना दी गई थी. अख्तर ने बताया कि प्रक्रिया जारी है और इसका इस विवाद से कोई सबंध नहीं है. वे इस खबर को छापने वाले अखबारों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की बात करते हैं. जालौन में अपने सरकारी आवास में बात करते हुए उन्होंने कहा, “मेरे खिलाफ लगाए गए आरोप बिलकुल बेबुनियाद और बचकाने हैं. इस तरह के आरोप बिना किसी सबूत के छाप दिए गए हैं. मैं इसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करूंगा… मैंने किसी को फोन नहीं किया.” उनका कहना है कि उनकी साफ छवि को धूमिल किया गया है. अख्तर ने डॉक्टरी की पढ़ाई करने के बाद 2011 में लोक सेवा आयोग की परीक्षा दी थी और पहली ही बार में 55वां रैंक पाया था. जालौन में डीएम के पद पर नियुक्ति से पहले वे मुख्यमंत्री योगी (जब वे सांसद थे) के चुनाव क्षेत्र गोरखपुर मे मुख्य विकास अधिकारी थे. 31 वर्षीय अख्तर का कहना है कि “मुझे असम के अपने शहर तेजपुर से फोन आ रहे हैं. लोग मेरी निष्ठा पर सवाल उठा रहे हैं. मीडिया ने बेवजह मेरी छवि खराब कर दी है.”

अख्तर के खिलाफ आरोपों की जांच कर रहे डिवीजनल कमिश्नर अमित गुप्ता ने ‘दिप्रिंट’ से कुछ कहने से मना कर दिया. उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि वे अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप देंगे.