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Friday, March 29, 2024
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सलमान और उनके साथियों के लिए बदसूरत या प्रतिभाहीन होना भंगी होने के बराबर है

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यदि आप 2017 के जातिवाद को 2018 में ले जाने पर आमादा नहीं हों, तो यह शायद एक अच्छा समय है कि आप भंगी शब्द का उच्चारण करना बंद कर दें.

एक बार फिर हम उसी बहस पर हैं जहां इसकी व्याख्या की जा रही है कि जब एक सुपर सितारा किसी बेकार दिखते या प्रदर्शन करते व्यक्ति को ‘भंगी’ पुकारता है, तो यह मायने रखता है.

हाल ही में, अभिनेता सलमान खान औऱ शिल्पा शेट्टी के कुछ पुराने वीडियो सामने आए हैं, जहां वे किसी अजीब से डांस-स्टेप या फिर बेढंगे एपीयरेंस के बारे में बात करते हुए बताते हैं कि इससे उनको ‘भंगी’ जैसा महसूस हुआ. अब आप यह कह सकते हैं कि उन्होंने वास्तव में भंगी का मज़ाक नहीं बनाया या फिर भंगी होने में कोई बुराई नहीं है। दरअसल, उन्होंने कहा था कि वे एक भंगी जैसे दिखते हैं.

तो, मसला क्या है? सिवाय इसके, कि आप ग़लत हैं.

भाषा और शब्द उन चीजों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो एक समाज का विचार होता है. यह कोई छिपी बात भी नहीं है कि एक समाज के तौर पर हम घनघोर जातिवादी हैं. हम दलितों का मज़ाक मूंछ रखने पर उड़ाते हैं, किसी ‘निम्न’ जाति के व्यक्ति को ‘उच्च’ जाति में शादी करने पर मार डालते हैं और अपनी रसोई से ‘निम्न’ जाति के मजदूरों को दूर रखते हैं, क्योंकि कौन जानता है कि ‘उनके हाथ इससे पहले कहां थे’? इसीलिए, जब खान और शेट्टी खुद के भंगी दिखने की बात करते हैं, जब वे बेहद गंदे दिख रहे हों, तो दरअसल वे गंदा नाबदान खोल रहे होते हैं, जहां हमारे समाज की निम्न जाति के लिए घृणा झलकती है, खासकर भंगियों के लिए! क्या हम पहले से नहीं जानते कि भंगी बिल्कुल वैसे ही दिखते हैं जैसे शिल्पा शेट्टी अपने बदतरीन या सलमान अपने सबसे गंदे अवतार में दिखते हैं?

हममें से सभी, चाहे वे हिंदी सिनेमा के सुपर-सितारे हों, मल्लिका दुआ जैसी लोकप्रिय हंसोड़ या विदूषिका (कॉमिक) हों जो अक्सर न्याय के पक्ष में दिखाई पड़ती हैं या फिर स्कूल में पांचवी से मेरा दोस्त, ये सभी किसी न किसी तरह इस बात से सहमत दिखते हैं कि कुत्सित और घृणित का जो ‘उच्चजाति का प्रारूप’ होता है, वह भंगियों की अति-सामान्य सच्चाई है.

तथाकथित उच्च जातियां कई बार मानती हैं कि भंगी का मतलब ही अनिवार्य तौर पर गंदा, प्रतिभाहीन, कौशलहीन और आम तौर पर उनका सबसे वाहियात प्रारूप होना होता है. इसीलिए, वे बड़ी आसानी से उस किसी को भी गाली दे देतें हैं, जो उनकी इस परिभाषा पर खरा उतरता है.

यह जान लीजिए कि सिवाय इसके कि आप जब यह गाली देते हैं, तो आप किसी काल्पनिक मसखरे या राह चलते मूर्ख से बात नहीं कर रहे हैं, आप सीधे तौर पर उस जाति में पैदा व्यक्ति के बारे में बात कर रहे हैं. वह व्यक्ति भाई का सबसे बड़ा फैन हो सकता है, जो दुआ की कॉमेडी से तब तक सशक्तिकृत महसूस कर रहा था, जब तक ‘भंगी बम’ उनके मुंह से नहीं गिरा हो, या फिर एक 10 वर्षीय बच्चा हो सकता है, जो अपना सिर तब तक फव्वारे से नहीं उठाएगा, जब तक उसके दोस्त जो दूसरों को गंदी यूनिफॉर्म के लिए भंगी कहते हैं, वहां से चले नहीं जाते हैं.

जिन लोगों की तथाकथित ‘नीची’ जातियों में जन्म की वजह से ही इस देश में रोजी चलती है या उनकी जिंदगी पारिभाषित होती है, कई बार जानते हैं कि यह गाली साफ तौर पर उनके बारे में नहीं है। हालांकि, वे यह भी जानते हैं कि उनके घर कितने भी साफ हों, यूनिफॉर्म कितनी भी साफ हो, वे फिर भी गंदगी, अयोग्यता और गंदगी के उच्चतम प्रतीक रहेंगे, जहां तक हमारी जातिवादी संस्कृति का मतलब है.

जब वे कम आकर्षक दिखने पर यह कहते हैं कि वे भंगी दिख रहे हैं, इसका मतलब है कि वे उतने ही खराब दिख रहे हैं, जितना एक भंगी रोजाना दिखता है. उनके और शेष समाज के लिए, क्योंकि भंगियों को देखने, सराहने या व्यवहार करने का कोई दूसरा तरीका नहीं है.

यह विचार एक सेकंड के लिए भी हमें नहीं सालता कि भंगी होने की वजह से हम थोड़े कम प्रतिभाशाली हैं, जब एक लोकप्रिय चेहरा इसे कहता है. यह हमारे क्लासरूम, काम करने की जगह, नौकरी की खोज औऱ घर तलाशने यहां तक कि हमारे व्यक्तिगत संबंधों तक भी हमारा पीछा करता है. जितना भी ‘उच्च’ वर्ग अपने बदतरीन से भंगी की सच्चाई की तुलना करेगा, उतना ही अधिक तार्किक यह दिखता है, जब तक इसे एक गृहीत सत्य की तरह हम स्वीकार न कर लें.

यह उसी तरह के सत्य का प्रकार है, जो वास्तविक भंगियों को मजबूर करता है कि वे माने कि वे ‘उच्च’ जाति के लोगों के बदतरीन प्रारूप हैं, कि वे उनसे कम योग्य हैं, कम प्रतिभाशाली और कम बराबर हैं. यह उस तरह का तथ्य बन गया है, जो आपके कानों में तरल तेजाब की तरह पड़ता है, जब वे कहते हैं कि वे भंगी की तरह दिखते हैं, क्योंकि उन्होंने एक हफ्ते से स्नान नहीं किया है. इस सांस्कृतिक सच्चाई की वजह से आप डर के मारे इसे ज़ोर से नहीं कह पाते, क्योंकि आप उस कड़वी नफरत को अपने ऊपर थोपना नहीं चाहते, जितनी नफरत से ‘उच्च’ जाति के लोग इस शब्द का इस्तेमाल करते हैं. आपकी पहचान समाज के सबसे बदतर या फिर उसके भी बृहत्तर आयामों मे हो जाती है.

शब्द मायने रखते हैं, उनके अर्थ भी. आप शायद नहीं जानते कि काले लोगों के लिए आप ‘न’ से शुरू होनेवाले या LGBT समुदाय के लिए ‘फ’ से शुरू होने वाले शब्दों का उच्चारण नहीं कर सकते ( अगर आप नहीं जानते, तो शायद खुद को शिक्षित करने का वक्त है). अपनी कमियों या अक्षमता को बताने के लिए भंगी शब्द का इस्तेमाल उतना ही बुरा है और उन्हीं कारणों से बुरा है. जब तक आप 2017 के जातिवाद को 2018 में नहीं ले जाना चाहते हैं, तो शायद वक्त आ गया है कि आप इसका इस्तेमाल करना बंद कर दें.

याशिका दत्त न्यूयॉर्क स्थित लेखिका और पत्रकार हैं जो भारत में ‘निम्न’ जाति में पैदा होने पर होनेवाले अनुभवों पर एक नॉन-फिक्शन किताब प्रकाशित करने वाली हैं. उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स में प्रिंसिपल कॉरेस्पांडेंट के तौर पर काम किया है। वह दलितों से भेदभाव की घटनाओं को दस्तावेजीकृत भी करती हैं.

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